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________________ स्तवनावली. अथ महावीरस्वामीनु स्तवन. - राग माढ. प्रीतलागीरे जिनंदर्श प्रीतलागीरे. श्रांचली. जैसे धेनु वन फिरेरे, जन वढरे केरे मांह ॥ चरण कमल त्यूं वीर केरे, बिन कही विसरत नाह ॥ जिनंद ॥ १ ॥ विंध्याचल रेवानदीरे, गज वर झूलत नाद ॥ मनमोहन तुम मूर्त्तिरे, सिमिरत मिटे दुःख दाद ॥ जिनंद ॥ २ ॥ तें तार्यो प्रभु मोहकोरे हरि जवसागर पीर ॥ ग्यान नयन मुजे तें दीयेरे, करुणा रसमय वीर ॥ जिनंद ॥ ३ ॥ कोटि वदन को डि जीनसेंरे, कोमी सागर पर्यंत ॥ गुन गाउं तेरे नक्तिशुंरे, तो तुम रिप कोन अंत ॥ जिनंद ॥ ४ ॥ क़दियक दिन मुज वशे रे, निरखुं तेरोरे रुप । मो मन आशा तो फलेरे, फिर नपरुं नवक्कूप || जिनंद ॥ ५ ॥ चरण कमलकी ६ ६१ www
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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