SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घादश नावना. नूला नारे तनु । आंचली। रस लोही पल मेद हाड से मझा रेत गुहानारे । आंत मूत पित्त सिंजही कसमल अतिही पुगंध जरानारे। तनु।१।नवहिज श्रोत जरे मलगंधि रस कर्दम असुहानारे । तनुमे शुचि संकल्पहि करना एहीज नाम अज्ञानारे । तनु।। नव वरननी मुख चंडज्यूं निरखी मनमें अति हरपानारे । रुधिर पूयमल मूत्र पेट में नसनस मैल नरानारे ॥ तनु॥३। रुधिर मंसकी कुच ग्रंथी है मुखसें लाल बहा. नारे । गूथ मूत्रके छार घनीले तिनसे नोग करानारे । तनु । ४ । अशुचितर · खान देह शुचि नाही जो सत स्नान करानारे बातम थानंद शुचितर सोहे देह ममता तजरानारे । तनु । ५। ॥ इति अशुचि नावना ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy