SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तवनावली. १ए गार आतम हेतेरे। गुरु षट् कायक प्रति पाल संजम लेखेरे ॥ सखी ॥३॥ शानि गुरुजीना ज्ञानथीरे।गुण पर मतमें थायरे । राणीजीना राजथीरे कां पुस्तक नेटणुं श्राय गुरुने संगेरे । थयो महीमा धरमनो जेह चमते रंगेरे॥ स० ॥४॥ गुणवाल। गुजरातमारे। ग्राम नगर पुरजेहरे। गुरुजी हमारे गुण बहु कीधो। दीधो धरम उपदेश सांजली बुकारे के नव्य जीवनाथोक संजम लीधारे ॥ स ॥५॥ सशुरु सिका चलजी नेटी । जनमनोलाहोलीधरे। संघचतुरविध मली करीरे सूरि पदवी दीध गुरुजीने रंगेरे । उँगणिसें बेतालीस अधिक उमंगेरे ॥ स०॥६॥ एम अनेक गुण गुरुजीकेरा कहेतां नावे पाररे । पंचमे शारे परगट करता गुरुजी बह जपगार एदनेसेवोरे। ए गुरुजीनो संयोग मोदनो मेवोरे ॥ सा ॥ ७॥ दरजावतीमें रही चौमासुंउंगणिसे तालीसरे । वीरविजय
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy