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________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. १७ निबाद अवगुण गुण न विचारिये ॥ जि० ॥ ६ ॥ जि०॥ शीतल जिनवर नाम शीतल सेवक की जिये | जिणाजि०॥ शीतल श्रातम रूप शीतलजाव धरी जिये ॥ जि॥ ७ ॥ जि० इति श्री शीतलनाथ जिन स्तवनम् । १० १ श्री श्रेयांसनाथ जिनस्तवन ॥ पीलें रे प्याला होय मतवाला ए देशी ॥ श्री श्रेयांस जिन अंतर जामी । जग विसरामी त्रिभुवन चंदा ॥ श्री० ॥ श्रे० । कल्पतरु मनवंबित दाता | चित्रावेल चिंतामणि चाता । मन वंबित पूरे सब श्रासा ॥ संत उधारण त्रिभुवन त्राता । श्री श्रे० ॥ १ ॥ कोई विरंचि ईस मन ध्यावे | गोविंद विष्णु उमापति गावे । कार्त्तिक साम मदन जस लीना ॥ कमला जवानी जगति रस जीना । श्री श्रे० ॥ २ ॥ एही त्रिदेव देव अरु देवी । श्री श्रेयांस जिन नाम रटंदा || एक ही सूरज जग I ·
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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