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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत,
श्री शीतलनाथ जिनस्तवन । बजारे की देशी ।
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शीतल जिनराया रे त्रिभुवन पूरण चंद शीतल चंदन सारिसो जिनराया रे । जिन । मुऊ मन कमल दिनंद ज्यों लोदनेपारसो ॥ जि० ॥ १ ॥ जि० ॥ और न दाता कोय अजय श्रषेद भेदनो ॥ जि० ॥ जि० ॥ सगरेदेव निहार कौन हरे मुफ के- दनो ॥ जि० ॥ २ ॥ जि० ॥ गर्भवास दुःख पूर कलमल संयुत यानमें ॥ जि०॥ जिना पित्त सलेषमपूर दुःखजरे बहु जानमें ॥ ज० ॥ ३ ॥ जि०॥ जन मत दुख अपार मोहदशा महा दमें || जि० ॥ जि० ॥ ब मन मांहि विकारकीट फंस्यो जैसे गंढ़ में ॥ जि॥४॥ जि० ॥ परबश दीनानाथ मुऊ करुणाचित खनिये जि० ॥ जि० ॥ तारो जिनवरदेव वीनतमी चितानिये ॥ जि० ॥ ५ ॥ जि० ॥ करुणासिंधु तुम नाम छाब मोहि पार उतारिये जि० ॥ जि० ॥ पणा बिरद
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