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१. श्रीवीरविजयोपाध्याय कृत, बिकी चंदनासती ॥ करम विना कहो कौन करे ऐसी गती ॥६॥ राजा हरिचंद निचघरे नोकरी करे ॥ राणी सुतारानिच घरे पानीनरे ॥ सतवादी सीरदारदोनुने दुःख लडें ॥ करम मरम सब जाण जो सिहांते कडं ॥७॥ ऐसें करम विपाक देखी नवसें मरो। मुखके देवनहार करम कोईना करो । ए उपदेस है लेश नबी जो चितधरे । वीरविजय कहे तेह लवी नवजल तरे ॥ ७॥ संवत् उँगलिसे साल तेवंजामन रली। श्रा सो शुदिकी त्रिज तिथी नयी निरमली । नगर स्यापुर विच चौमासुं रही करी। करम कथा कही एह सुनो सवदिलधरी
इति कर्मोपरि सजाय ॥ समाप्तं ॥
॥ अथ त्याग सकाय॥ तुम बोमो जगतके यारा श्नसें नहीं