SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ए सजाय. तेह सवी संकट लीया ॥ श्रादीसर अरिहंत संत अनंत बली ॥ एक वरसविन आहार मुख तरिषा सही ॥ श् # विप्र घरे अवतार वीर विनूने लीया ॥ करम न बोने लिगार पुरवजो मद कीया चक्री सनतकुमार रोग बहुला लही । करमतणी गत जाय कहो ते किम कही || ३ || लक्ष्मण राजन रामचंद्र सीता सती । वार वरस वनवास पुष्ट करमगती । द्वारावती जयी दाहसें कृम जादवपति । लंकाचष्ट लंकेश करमगत नहीं मिटी ॥ ४ ॥ पांकुराय के पुत्र पंच पांव - ला | हारी डुपदी नार प्रगट खेडी जुवा । बार वरस वनवास दास पणे ते रही । करम न करशो कोई बात प्रभुने कही ॥ ५ ॥ सती सुभद्रा नारदूजी अंजना सती । करम तणे परजाव कलंक चडो अति ॥ चारों चौटाविच
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy