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________________ पदो. १८३ रवार अवसर नहीं थावे | सदगुरुसें सुपिजे जी ॥ जे ॥ ११ ॥ करमरायने विवरदीयो जब जाग्योदय जया बलिया । वीरविजय कहे आज हमारे मनका मनो रथ फलियाजी ॥ जे ॥ १२ ॥ इति जेसलमेर स्तवन समाप्तं ॥ ॥ अथ नेमराजुलसंबंधी पद ॥ ॥ रोग पंजाबीठेगो ॥ पीया कारण गढगीरनार चली । रापी राजमति व्रतचित धरी ॥ पी ॥ १ ॥ अधिक प्रीत रसरीत जानके । नेमपिया करसीरधरी ॥ २ ॥ तप जप संजम ध्यानानलसे । करम ईंधन परजाल चली ॥ पी ॥ ३ ॥ नेमराजुलकी प्रीत पुराणी ॥ अंतमे ज्योती ज्योतमीली ॥ पी ॥ ४ ॥ प्रह जगमते दंपती नामे । वीरविजय मन रंगरली ॥ पी ॥ ५ ॥ इति संपूर्णं ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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