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________________ १८१ श्रीमदिर विजयोपाध्याय कृत, संघवी पद हे पुराणा । जेलसमेरकी जात्रा जातां । श्रानंद हरष जराणाजी ॥ जे ॥ ५ ॥ विकट पंथने विकट जामी । क्या करूं उनकी कहाणी | कांटा जाहाजुरुट कांखरां । पूरण न भले पाणी जी ॥ जे ॥ ६ ॥ हामहाम में गाम न आवे | जो आवे तो बाणी । संघ मुकाम करे जंगलमें | देश तंबूताषी जी ॥ ७ ॥ दिनरात रस्तामें पेहेरा । देता चोंकीवाला | डाढी मुंबाने मसराला | हाथमे बंधूक जाला जी ॥ जे ॥ ८ ॥ अनुक्रमे कठिण पंथ उलंघी विघन रहित सब जावे । पो करणफलोधी जात्रा करके । जेसलमेरमें आवेजी ॥ जे ॥ ए ॥ उगणि से सम सव पोषशुदकी दशमी मंगलवारे । जेसलमेर में जिनवर नेटा | आनंद मंगला च्यारेजी ॥ जे ॥ १० ॥ तनमन धनसें जात्रा कीजे नरजव लाहो लिजे । वा 1
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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