SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७५ श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, शहेर अंबाले नेटी। प्रजुजीका मुख देखी। मानुष्य जनमका लोहा । लेनासो तो लेलीया ॥ क्युं ॥६॥ उन्निसो साब बबिला।दीपमाल दिनरंगिला॥ कहे वीरविजे प्रजु । नक्तीमें जगादिया ॥७॥ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥श्री चंपामंडन वासुपूज्य जिन स्तवन ॥ . चंपा मंमन सुखदाया। श्री वासुपूज्य जिनराया ॥ आंकणी ॥ प्रनु जयादेवी के जाया। वसु रायके वंसदीपाया। मिल चौसह इंजे गाया। में पुन्ये दरिसण पाया ॥ श्री॥१॥ प्रनु पंचकल्याणिक जाया । च्युति जन्म वैराग्य जराया । वरनाण परमपद पाया। मंगलचंपामें ग वाया ॥ श्री॥२॥ कल्याणिक नूमि जाणी। तिरथमें चंपा गवाणी। नगरीमें
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy