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स्तवनावली. दानंदन जव मुख कंदन । नामसें शीत जयोरी। शोच करत विचारो चंदन । नंदन वन मे गयोरी। जाको मान नंगथयोरी ॥ च ॥ ५॥ ढुंढत ढुंडत शहेर शुधामें । शीतल नाथ मिल्योरी । वीरविजय कहे आतम आनंद । आज ह. मारे थयोरी। दरशसें पाप गयोरी ॥च॥६॥
इति स्तवन संपूर्ण ॥
॥ अथ हस्तिनापुर स्तवन ।
॥ राग होरी ॥ ॥ चालो खेलिये होरी जिहां जिन कल्याणक नयेरी ॥ चा ॥ टेक ॥ सुंदर हस्तिनागपूर है । पूरवदेस मोजारी। जिहां जिनतिनके कल्याणिकका। कथन हे सूत्र मोकारी । सब जिवन हितकारी ॥ चा ॥१॥ शांतिनाथ श्रीकुंथुनाथ जी। अरजिनअंतर जामी । चवन जन
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