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________________ १५ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, मत उर नस्यो है । जिन चरणांचित लाइ सखीरी ॥ चा ॥१॥ सम संवेग निरवेद लस्यो है। करुणारस सुखदारी। जैन बैन अति नीके सगरे, ए नावना मननाई ॥ स ॥ चा० ॥॥ संका कंखा फल प्रति संसा। कुगुरु संग बिटकारी। परसंसा धर्महीन पुरुष की।श्न नवमांहि न कांरी ॥ स॥चा ॥३॥ ग्ध सिंधु रस अमृत चाखी। स्यादवाद सुखदारी। जहरपान अब कौन करत है। पुरनय पंथ नसा ॥ स ॥ चा० ॥४॥ जब लग पूरण तत्त्व न जाण्यो। तब लग कुगुरु जुलारी। सप्तनंगी गर्जित तुम वाणी नव्यजीव सुखदाई ॥ स० ॥ चा० ॥५॥ नाम रसायण सहु जग नासे।मर्म न जाने कांरी। जिन वाणी रस कनक करण को। मिथ्या लोह गमा॥ स ॥ चा॥६॥चंड किरण जस उजाल तेरो। निर्मल जोत सवारी। जिनसेव्यो निज
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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