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________________ स्तवनावली. १४१ ज प्रभु मुख जोवतांहो राज ॥ प्र ॥ सा ॥ १ ॥ सेवकरी एक विनतीहो राज || सा ॥ श्रवधारो मोहा राय दया करी माहरी हो राज ॥ द ॥ सा ॥ २ ॥ तस्करच्यार डरामणाहोराज ॥ लाग्या माहारी लारके वेगे निवारजोहो राज ॥ वे ॥ सा ॥ ३ ॥ काल अनादि लुटियो हो राज । सा । इतस्करे भुजनाथ वात कोण सांजले होराज ॥ वा ॥ सा ॥ ४ ॥ ज्ञान खमग मुज दिजिये होराज ॥ सा ॥ कीजीये सेवक सार वार करो माहरी हो राज ॥ व ॥ सा ॥ ५ ॥ श्रव तुमचरणे थाइने हो राज ॥ सा ॥ जव जव संचित पाप करम दल काटसां हो राज ॥ सा ॥ ॥ ६ ॥ धन धन मरुदेवी मातने हो राज ॥ सा ॥ नाजीराय कुलहंस वंस इदवागनो हो राज ॥ वं ॥ सा० ॥ ७ ॥ सेवक दुःखियो देखीने हो राज ॥ सा ॥ मनमे ·
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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