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श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत,
॥ अथ श्रीतारंगाजी मंडन स्तवन ॥ ॥ विषयों के नेडे मत जार्ज । ए देशी ॥ तारंगतीरथे सोहाय तारंगती रथे सोहाय ॥ प्रभु मेरोरे तारंगती रथे सोहाय ॥ श्रकणी ॥ मुलनायक श्री अजित जिनेश्वर नेटां जवदुःख जाय ॥ प्रभु ॥ १ ॥ जवजव जटकत शरणेहुं आयो अबतो र खोजी मोरी लाज ॥ प्रभु ॥ १ ॥ तारंगतीरथे विजनतारण बैठे ध्यान लगाय ॥ प्रभु ॥ ३ ॥ हुं अनाथ मुजको जो तारो जगमे बहुजश थाय ॥ प्रभु ॥ ४ ॥ वीरविजयनी विनती एही । आवागमण नि
वार ॥ प्रभु ॥ ५॥
॥ इति तारंगामंडन स्तवन संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री धुलेवा मंडन केसरियाजी स्तवन ||
॥ राग सारंग ॥ दांहांरे वाला श्राज
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