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स्तवनावली.
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॥अथ श्रीअर जिन स्तवन.॥ ॥चिंतामणपास प्रनु अर्जहै सुनो तो
सही ॥ ए देशी ॥ अरजिनदेव विना औरकुंमागें तो नही। तुम विन नाथ जो देव में चाहूं तो नहीं ॥ श्रर ॥ आंकणी ॥ काम क्रोधमदमोह सोहें करी नरियल हरिहर देवने मानुतो नहीं ॥ अरण ॥॥ मनवंबित चिंतामणि पामीने काच शकल हवे हाथमां कालुं तो नहीं ॥ अरण ॥३॥ गले मोतियनकी माला में पेहेरीने और मालकाठकी हृदयमें धारतो नहीं ॥ श्रर ॥४॥ खीरसमुडकी लहेर ढुंगेमीने बीवर जलनीमे चाहना करंतो नही॥ अर॥५॥ शांत स्वरूप प्रज्नु मुरतिदेखीने तनमन धीर करी आतमा हारतोसही। ॥ अर० ॥ ६ ॥ वीर विजय कहे थरजिन