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स्तवनावली. _ ११ तर करुणाधारी ॥ प्रजु ॥ श्रांकणी ॥ विश्वसेन अचिराजीको नंदन कर्मकलंक निवारी अलख अगोचर अकल अमर तुं मृगलंबन पदधारी ॥प्र० ॥१॥ कंचन वरण शोना ततुं सुंदर मुरती मोहन गारी। पंचमोचकी सोलमो जिनवर रोगशोग नयवारी ॥प्रजुगा॥ पारापत प्रनु शरण ग्रहीने अनयदान लीयोनारी।हम प्रजुशांति जिनेश्वर नामे लेशुं शीवपटणीरा ॥प्रनु ॥३॥ शांति जिनेश्वर साहिब मेरा शरण लीया में तेरा । कृपाकरी मुज टालो साहिवजनम सरणना फेरा॥प्रजुत ॥॥ तन मन धीर करे तुम ध्याने अंतर मेलते वामे। वीरविजय कहे तुम सेवनधी आतम आनंद पामे ॥ प्रजु ॥५॥ ॥ इति श्रीशांतिनाथ जिनस्तवन ।