________________
१२०
श्रीमद्दीर विजयोपाध्याय कृत,
॥ अथ श्री धर्मनाथ स्तवन ॥ ॥ राग काफी ॥ धर्म जिनंदसुं प्रीत लागी मुनेरे धर्म जिणंदसुं प्रीत ॥ श्रकणी ॥ प्रीत पुराणी न तोमो जिनजी । ए सनकी न रीत ॥ लागी० ॥ १ ॥ दान शील तप जावना चौविध। धर्म की थापना कीध | लागी०॥२॥ दशद्वादश विध साधुश्राऊ के । देशना धमकी दीध ॥ लागी० ॥ ३ ॥ जगतजंतु उद्धारणखातर | मारग कीयो रे प्रसिद्ध ॥ लागी० ॥ ४ ॥ धर्म नाथ जिन धर्म प्रकाशी । जगमे बहु जश लीध ॥ लागी० ॥ ५ ॥ वीरविजय श्रातम पद लेवा | धर्म सुण्यानीरे प्रीत | लागी० ॥ ६ ॥ ॥ इति श्रीधर्मनाथ जिन स्तवन ॥
॥ अथ श्रीशांति नाथ जिन स्तवन ॥ ॥ राग देश सोरठ ॥
प्रभु शांति जिनंद सुखकारी घट -