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१०६ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत,
विनाग दूसरा.॥ श्री मद्पाध्यायजी महाराज श्री वीरविजयजी महाराज विरचित
स्तवनावली. ॥ अथ श्री आदि जिन स्तवन. ॥
राग जेजेवंती. थादि मंगल करुं।श्रादि जिन ध्यान धरूं । फेर नही पास परुं नव वन जालमे । लागी तोरी माया जोर । देखत हुं होरकोर । दरिसण उरलज लीयो बहु कालमें ॥था ॥१॥ माता मरुदेवा नंद नानीराय कुलचंद ॥षन जिनंद प्रनु आदि को करण । बोमी सब राजरीधी। संजमसे प्रिती किधी । जगतकी निती सब रीती बतलाश्दे ॥ श्रा ॥२॥ उरधर तप करी। अष्टापदोपरि चडी। अणशण करी वरी शीवपटरा