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श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत,
आत्मोपदेश पद.
( राग गुजरी). ते तेरा रुप न पायारे अज्ञानी तें तेरा। ॥श्रांचली ॥ देखीरे सुंदरी परकी विनूति । तुं मनमें ललचायोरे । अज्ञानी ॥१॥ एक हि ब्रह्म रटि रटनारे । परवश रुप नूलाया रे ॥ अझानी ॥२॥ माया प्रपंचहि जगतकों मानी। फिरति नमेहि नूलायारे । अज्ञानी ॥३॥ सुकवत पाठ पढी ग्रंथनकों। मिथ्या मत मुरफायारे ॥ अज्ञानी ॥४॥ जेसे कर बी फिरे व्यंजनमें । खाद कबुयन पायारे। अज्ञानी ॥५॥ परगुन संगी रमणी रस राच्यो । आडो अद्वैत सुनायारे॥अज्ञानी ॥६॥ श्रात्मघाती नाव हिंसक तुं। जगमें महंत कहायारे ॥ अज्ञानी ॥७॥