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अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् ।
[ तृतीयो वर्गः
का वर्णन छठे अङ्ग के पश्चम अध्ययन में है । यह 'अनुत्तरोपपातिकसूत्र' नौवां अन है | अतः सूत्रकार ने उसी वर्णन को यहां पर दोहराना उचित न समझ कर केवल दोनों का उदाहरण देकर बात समाप्त कर दी है । पाठकों को इनके विषय में पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिये उक्त सूत्रों का अवश्य अध्ययन करना चाहिए । तब भी पाठकों की सुविधा को ध्यान मे रखते हुए हम इतना बता देना आवश्यक समझते हैं कि उक्त कुमारों के जीवन मे श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्म-कथा सुनने को जाना, वहां वैराग्य की उत्पत्ति, दीक्षा महोत्सव, परम उच्चकोटि का तपःकर्म, शरीर का कृश होना, उसी के कारण अर्ध रात्रि मे धर्म- जागरण करते हुए अनशन व्रत के भावों का उत्पन्न होना, अनशन कर सर्वार्थ सिद्ध विमान मे उत्पन्न होना, जिससे महा विदेहादि क्षेत्रों में उत्पन्न होकर सिद्ध-गति प्राप्त कर सके आदि ही मोटी बाते है, जिनके आधार से उक्त सूत्रों के स्वाध्याय में सहायता मिल सकती है, क्योंकि यही विषय हैं जिनके लिए स्कन्दक और स्त्यावत्यापुत्र को उदाहरण मे रखा है ।
इस सूत्र मे 'पूर्वरात्रापरात्रकाल' शब्द आया है जिसका अर्थ मध्य-रात्रि है । यही समय एक ऐसा है जब सारा संसार प्रायः सुनसान रहता है । अतः धर्म- जागरण करने वालों का चित्त इस समय एकाग्र हो जाता है और उसमे पूर्ण स्थिरता विद्यमान होती है । ऐसे ही समय मे विचार धारा बहुत स्वच्छ रहती है और मस्तिष्क मे बहुत ऊंचे विचार उत्पन्न होते है । यही कारण है कि धन्य आदि अनगारों के उस समय के विचार उनको सन्मार्ग की ओर ले गये ।
सूत्र में द्विवचन के स्थान मे 'दोन्नि' बहुवचन का प्रयोग हुआ है । इसका कारण यह है कि प्राकृत भाषा में द्विवचन होता ही नहीं ।
अब सूत्रकार प्रस्तुत सूत्र का उपसंहार करते हुए कहते हैं :
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एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवता महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयं-संबुद्धेणं लोग - नाहेणं लोग-पदीवेणं लोग-पज्जोयगरेणं अभय-दएणं सरण-दरणं चक्खु-दएणं मग्ग-दरणं धम्म-दरणं धम्म- देसणं- धम्मवर - चाउरंत