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________________ तृतीयो वर्गः ] भाषाटीकासहितम् । [ ९३ ने नव-नौ महीने की दीक्षा पालन की सेसाणं- शेष आठों की दीक्षा बहू वासाबहुत वर्षों की थी । मासं - एक मास की संलेहणा - संलेखना सब ने की सब्वट्टसिद्धेसर्वार्थसिद्ध विमान में सब उत्पन्न हुए महाविदेहे महाविदेह क्षेत्र में सिज्झणासब सिद्ध गति प्राप्त करेगे । मूलार्थ — उस काल और उस समय राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था। नगर के बाहर गुणशैलक नाम चैत्य में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान होगये । परिषद् धर्म-कथा सुनने को आई और राजा भी आया । धर्म-कथा सुनकर परिषद् और राजा चले गये । तदनु मध्यरात्रि के समय धर्म- जागरण करते हुए सुनक्षत्र अनगार को स्कन्दक के समान भाव उत्पन्न हुए । वह बहुत वर्ष की दीक्षा पालन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप से उत्पन्न हो गया । उसकी वहां पर तेतीम सागरोपम की आयु है । वहां से च्युत होकर वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगा । इसी प्रकार शेप आठ अध्ययनों के विषय में भी जानना चाहिए । विशेषता केवल इतनी है कि अनुक्रम से दो राजगृह नगर में, दो साकेतपुर में, दो वाणिज - ग्राम में, नौवॉ हस्तिनापुर में और दशवां राजगृह नगर में उत्पन्न हुए । इनमें नौ की माताएं भद्रा नाम वाली थीं और नौ को बत्तीस २ दहेज मिले। नौ का निष्क्रमण स्त्यावत्यापुत्र के समान हुआ । केवल वेहल्लकुमार का निष्क्रमण उसके पिता के द्वारा हुआ । छः मास का दीक्षा - पर्याय वेल्ल अनगार ने पालन किया, नौ मास का धन्य ने । शेष आठों ने बहुत वर्ष तक दीक्षा - पर्याय पालन किया । दशों ने एक २ मास की संलेखना धारण की। सब के सब सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए और वहां से च्युत होकर सच महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध-गति प्राप्त करेंगे । टीका — इस सूत्र का विषय मूलार्थ और पदार्थान्वय मे ही स्पष्ट है । अतः उसको यहां पर दोहराना ठीक प्रतीत नहीं होता । कहना केवल इतना है कि यहां बार-बार स्कन्दक को ही उदाहरण-रूप मे रखा गया है, उसका ज्ञान हमे कहा से हो। इसी प्रकार स्त्यावत्यापुत्र के विषय मे भी कहना आवश्यक जान पड़ता है । इनमे से पहले अर्थात् स्कन्द्रक स्वामी का वर्णन पश्चम अङ्ग के द्वितीय शतक में आचुका है और दूसरे अर्थात् स्त्यावत्यापुत्र
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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