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________________ ni.nnnn wwe तृतीयो वर्गः] भाषाटीकासहितम् । [५३ manand सूखी हुई जूती हो । उनके पैरों मे मांस और रुधिर नाममात्र के लिए भी अवशिष्ट नहीं रह गया था, किन्तु केवल हड्डी, चमड़ा और नसे ही देखने मे आते थे। पैरों की अंगुलियों की भी यही दशा थी। वे भी कलाय, मूंग गा माष की उन फलियों के समान जो कोमल २ तोड़ कर धूप मे डाल दी गई हों-मुरझा गई थीं। उन मे भी मांस और रुधिर नहीं रह गया था । इस पकार इन उपमाओं से धन्य अनगार के शरीर का वर्णन इस सूत्र में दिया गया है। अब सूत्रकार इसी विषय से सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं : धन्नस्स जंघाणं अयमेयारूवे से जहा० काकजंघाति वा कंक-जंघाति वा ढेणियालिया-जंघाति वा जाव णो सोणियत्ताए, धन्नस्स जाणूणं अयमेयारूवे. से जहा कालि-पोरेति वा मयूर-पोरेति वा ढेणियालियापोरेति वा. एवं जाव नो सोणियत्ताए । धण्णस्स ऊरुस्सा जहानामते साम-करील्लेति वा बोरी-करील्लेति वा सल्लतिः सामली० तरुणिते उण्हे जाव चिट्ठति, एवामेव धन्नस्स ऊरू जाव सोणियत्ताए। धन्यस्य नु जयोरिदमेतद्रूपं तपो-लावण्यमभूदथ यथानामका काक-जङ्केति वा कङ्क-जोति वा ढेणिकालिक-जङ्केति वा यावन्नो शोणितवत्तया । धन्यस्य जान्वोरिदमेतद्रूपं तपो-लावण्यमभूदथ यथानामकं कालि-पर्वेति वा मयूर-पति वा ढेलिकालिका-पर्वेति वा, एवं यावच्छोणितवत्तया । धन्यस्योबोंरिदमेतद्रूपं तपो-लावण्यमभूदथ यथानामकं श्यामकरीरमिति वा बदरी-करीरमिति वा शल्यकी-करीरमिति वा
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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