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अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम्
सुणक्खत्त गमेणं-सुनक्षत्र के समान ६१ ) सेसं-शेष (वर्णन), बाकी सुणक्खत्तस्स-सुनक्षत्र के ६० | सेसा-शेष
२०, २७ सुणक्खत्ते-सुनक्षत्र कुमार ३२, ८६ | सेसाणं शेष का सुपुरणे-अच्छे पुण्य वाला
| सेसाणविशेष का भी सुमिणे स्वप्न में
१२, २७ | सेसावि-शेष भी सुरूवे-सुन्दर, अच्छे रूप वाला ३५, ८६ | सोचा-सुनकर
७२, ७३ सुलद्धे-अच्छी तरह प्राप्त कर लिया है ७३ | सोणियत्ताए,त्ते-रुधिर के कारण ५१ ।। सुहम्मस्स-सुधमं नाम वाले श्री महावीर ।
स्वामी के पांचवें गणधर और जम्बू । सोलस-सोलह १२, २०, २७ स्वामी के गुरु का
सोहम्मीसाण=सौधर्म और ईशान नामक सुहम्मे-सुधर्मा स्वामी
___पहला और दूसरा देवलोक ७३ सुहुय० (सुहुय-हुयासण इव) अच्छी हकुब-फले-हकुब-वनस्पति विशेष का तरह से जली हुई अग्नि के समान ४६
___ फल ६१ सुद्धदंते-शुद्धदन्त कुमार
२४ हट्ठ-तुट्ट-प्रसन्न और सन्तुष्ट ४३, ७३ १से वह, उसके ८, १३, ४२, ४५,४६, हणुपाए=चिबुक-ठोड़ी की
४६', ५१, ५३२, ५५, ५६, ६१, । | हत्थंगुलियाणं हाथों की अँगुलियों की ५६
६३, ६४, ६७, ७२, ८०,८६,६० । हत्थाणं हाथों की २से-अथ, प्रारम्भ-बोधक अव्यय ७२ | हत्थिणपुरे हस्तिनापुर में सेणिए श्रेणिक राजा १२, २०, २७,७१, | हल्ले-हल्ल कुमार
७२, ७३, ६० हुयासणे (इव)-अग्नि के समान सेणिओ=श्रेणिक राजा १२, २७ | होति होते हैं सेणिते श्रेणिक राजा
७१ | होत्था था, थी ३४, ३५२, ५१, ७२,८६ सेणिया हे श्रेणिक