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याधुनिक विज्ञान र श्रहिंसा
अमेरिका की सेना में 10-10 लाख सैनिको की कमी की जाय । किन्तु रूस ने इस बात को स्वीकार न करते हुए कहा कि सभी राष्ट्र अपनी सेना में कटौती कर ग्राणविक शस्त्रास्त्रों को नष्ट कर दे । इस कार्य को सम्पादित करने के हेतु एक संस्था का निर्माण सुरक्षा परिषद के प्रवीन हो। दोनो गुटों ने ग्रुपनी अपनी ऐसी योजनाएं रखी जो पारस्परिक समझौतो से दूर थी । रूस इस बात पर तुल गया कि अणुशस्त्रो का प्रयोग सर्वथा वैध घोषित किया जाय। 10 मई, 1955 को पुनः सोवियत रूस ने सयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष निशस्त्रीकरण का प्रस्ताव रखते हुए कहा, 'प्राणविक शस्त्रों का निर्माण र प्रयोग प्रवैध घोषित किया जाना चाहिए और सामान्य सेनाओ मे पर्याप्त कमी की जानी चाहिए। बड़े राष्ट्रो की सेनाओ की जाच के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय नियंत्रण सस्था निर्मित हो तथा सन् 1956 मे निशस्त्रीकरण के सम्बन्ध मे विचार करने के लिए एक विश्व सम्मेलन बुलाया जाय और साथ ही कुछ राष्ट्रो ने, विदेशो में जो सैनिक सगठन वना रखे है, उन्हें भी समाप्त कर दिया जाए।' इस प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्रसघ की निशस्त्रीकरण समिति ने विचार किया । इंग्लैण्ड यदि देशों ने प्रस्ताव की सराहना करते हुए स्वीकार किया कि रूस कुछ वाते तो मान गया है लेकिन इग्लैण्ड के प्रतिनिधि को निःशस्त्रीकरण के सम्बन्ध मे रूस का प्रस्ताव कुछ ग्रस्पष्ट-सा लगा। पश्चिमी देशो के अनुसार उस नियन्त्रणकारी सस्था के अधिकारियों को निशस्त्रीकरण को स्वीकार करनेवाले देशो पर किसी भी स्थान पर जाने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए और वह प्रत्येक ऐसे देश मे रहे जो निशस्त्रीकरण स्वीकार कर चुका हो । उनका तात्पर्य यह था कि रूस में प्रस्तावित नियन्त्रणकारी वह सस्था प्रभावपूर्ण कार्यवाही नही कर सकेगी।
इस उपक्रम से विश्व प्राशान्वित था कि उभय गुटो मे कभी न कभी समझौता हो जाएगा । भविष्य के सम्वन्ध मे तो क्या कहा जा सकता है किन्तु वर्तमान अनुभवो के आधार पर तो यह कहा ही जा सकता है कि यह केवल वाणी का विश्वासमात्र था । इसका कोई सुन्दर व आशाजनक परिणाम नही निकला । प्रेसिडेंट ग्राईजनहावर के 'ग्रोपन स्काइज प्लान' को भी रूस ने मान्य नही रखा। सन् 1958 मे लन्दन मे निशस्त्री
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