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आणविक अस्त्र प्रयोगा की नयवर प्रतिनिया
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जहाँ प्राणविक अस्त्रा का प्रचण्ड विरोध हो रहा है वहाँ चचिल जमे राजनीतिज्ञ ने कहा कि "उद्जन बम जसे ग्रस्या का होना बहुत आवश्यक है क्योकि यही एकमान ऐसा माधन है जो शक्ति को सतुलित बनाये रख सकता है और स्थिर शान्ति भी ।' जो राष्ट्र शस्ना के वल पर अपने को सुरक्षित समभता है । उसका सोचना भ्रामक है। उदाहरणाथ किसी नाग रिक के गृह म विस्फोटक पदाथ रखे हो और कितनी ही सावधानी रसने के बावजूद भी यदि प्रमादवश कभी ग्राग पकड ले तो सुरक्षा के लिए रखे गय वे पदाथ न केवल घर को ही भस्मीभूत कर देंगे, अपितु निक्टर्ती निवासियो का जीवन भी सकट में डाल देगे । इसी प्रकार अणुअस्त्रों की हिफाजत में तनिक भी स्खलना होने पर स्वत राष्ट्र मत्यु के मुख म चला जा सकता है । परराष्ट्र विनाश की वस्तु स्वराष्ट्र की रथा तब वहाँ कर पायेगी? एक बार आइन्स्टाइन ने मार्मिक वाणी में कहा था “श्राणविक युद्ध में विश्व का सावभौम नाश निश्चित है।" ऐस प्राणविक भस्मासुर से तब ही बचा जा सकता है जबकि विनाशकारी प्रयोगा मे सवथा वनानिव मुख मोडल |
इस विषय पर चिंतन करते हुए एक पौराणिक आख्यान "पुनमू पिको भव" स्मृतिपटल पर अकित हो भाता है।
किसी तपोवन में एक ऋषि का निवास था । एक दिन एक मूषक ( चूहा ) दौडता हुआ ऋषि की शरण में आया । शरणागत की रक्षा करना अपना परम कर्तव्य समझकर ऋषि ने उसे पकडने के लिए पीछे भागती हुई बिल्ली को भय का कारण मानकर" त्वमपि मार्जारो भव" तू भी बिल्ला हो जा का वरदान दे डाला। ऐसा ही हुया । विल्ली चली गई । एक दिन भयवर कुत्ता के बिल्ला के पीछे लगने पर शरणागत जिल्ला से ऋषि ने कहा " त्वमपिश्वानो भव" तू भी कुत्ता हो जा। जब एक दिन एक बाघ उस पर नपटने लगा तो ऋषि ने कहा- "त्वमपि व्याघ्रो भव" तू भी बाघ होजा । फिर एक दिन सिंह आया तो ऋषि ने बाघ को - " त्वमपिसिंहो भव" तू भी सिंह हो जा, का वरदान दे दिया । अव वह चूह से सिंह हो गया था | शरणागत सिंह ने एक दिन क्षुधानुर होने से इतस्तत घूमते हुए ऋषि को ही सपना भक्ष्य बनाने का सोचा। इस पर ऋषि ने कहा- अरे दुष्ट, मैंने तेरी