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याधुनिक विज्ञान और अहिंसा
पचा ले ? हाँ, भारत मे इस विषपान की शक्ति अवश्य विद्यमान है, जिसने समत्व की साधना और परदु ख कातरता व अखण्ड लोककल्याणकारी भावनाओ का जीवन मे सदैव साक्षात्कार किया है। समत्व का आधार ही यहाँ की सस्कृति की मूल प्रेरणा रही है। भारत ने ही पर-दुख को स्वदुःख रूप से अगीकार किया है। भारत ने विश्व के विभिन्न विचारवाले राष्ट्रों के सम्मुख शान्ति स्थापनार्थ पचशील जैसे जनकामी सिद्धान्त का सक्रिय सूत्रपात किया है। अहिंसा को न केवल भारत ने अपना अमृत ही माना है, अपितु इसीके आधार पर स्वराज्य प्राप्त कर विश्व को दिखला दिया कि भयकर वैषम्य मे भी अहिंसाल्पी अमृत साम्य स्थापित कर, कसी भी पेचीदगी को सरलता से सुलझा सकता है।
अणुवम के विनाशकारी प्रभाव ने विश्व राजनीति मे उथल-पुथल मचा दी। भय के कारण प्रत्येक राष्ट्र अपने पास विनाश अस्त्र बड़ी सत्या में संग्रह करने लगा है। और साथ ही यह भी अनुभव करने लगा है कि जिसके पास अणुशस्त्र नही है वे विश्व-राजनीति मे पश्चात्पाद गिने जाएंगे। भविष्य मे उनकी सत्ता नष्ट हो जाएगी। राजनीतिक क्षेत्रो में यह सोचा जा रहा है कि आणविक अस्त्र सग्राहक राष्ट्र ही अजेय है। इसी कारण आज रूस और अमेरिका मे मनोमालिन्य बना हुआ है। दोनो राष्ट्र शक्तिशाली आणविक अस्त्रो के स्वामी है। अपेक्षाकृत रूस कुछ आगे है। ये दोनो राष्ट्र आए दिन पारस्परिक घुड़कियां बताया करते है जिनका प्रभाव अन्य राष्ट्रो पर भी पड़ता है। यदि तृतीय महायुद्ध मे ये विनाशकारी अस्त्र प्रयुक्त हुए तो ससार की क्या दशा होगी?
__ अणु अस्त्र प्रयोगो के समय आइन्स्टाइन ने उचित ही कहा था, "अव हमारे सामने दो ही विकल्प है, या तो हम एक साथ जिएंगे या एक साथ मरेगे ।" यदि अणु अस्त्रो का प्रयाग हुया तो विश्व मे मानव जाति का अस्तित्व संदिग्ध हो जाएगा। इसीलिए मानव सभ्यता के उन्नतिशील द्रप्टा इस प्रकार के अस्त्रो के विरोध मे अांदोलन और प्रदर्शन द्वारा इनके विरोध मे वातावरण तैयार कर रहे हैं। परन्तु राष्ट्रो के साम्राज्यवादी मानस तक इसकी ध्वनि नही पहुँच पाती। यदा-कदा विरोध स्वरूप बड़े-बड़े दार्शनिक तक को कारावास भुगतने को विवश होना पड़ता है।