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चौदह
विज्ञान के सहारे प्राकृतिक शक्ति का उपयोग
प्राचीन काल का अविव सित मानव पृथ्वी, जल, वायु विद्युत, आवारा, सामुद्रिक ज्वार, बादल आदि प्राकृतिक वस्तुओं को देख कर आश्चर्यावत हो जाता था । यह सब उसकी विचार शक्ति से परे वो चीजे थी । वह इह पोनोत्तर दाक्ति के प्रतीक मानता था। तभी तो ये तत्व देवता वे समान पूजाअध्य वे' पात्र समझ जाने लग थे। उन दिना इनका समुचित उपयोग न होता था । अद्यतन मानव विज्ञान की ज्योति मे इमे पहचान गया और ये देवसम समझे जाने वाले इन प्राकृतिक रहस्या का उपयोग सम्पादन कर चुका है । आज श्राशिक प्राकृतिक शक्ति वे उन रहस्यो का प्रभाव मानव पर नही रहा अपितु वे सन मानव के नियंत्रण में हैं।
विज्ञान का प्राकृतिक शक्तिया पर नियत्रण भी एक उद्देश्य है जिसके महाय्य से मानव प्रकृति पर विजय प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील है। वस्तुत दोनो ओर से विज्ञान की सहायता मानव को प्राप्त है। एक ओर से तो विमान विविध प्राविप्वार अवेषण में मदद देता है और दूसरी ओर वह सहायता प्राप्त है, जिसका अभिप्राय विविध शक्तिया पर नियत्रण करना है। रेलवे इजन, पनडुब्बी, वा, विमान, टेलीफोन, टेलीविजन और रेडियो श्रादि वे श्राविष्कार प्रकृति पर विजय प्राप्ति के प्रतीक है। जल, वायु, ज्वार, आदि प्राकृति पक्तिया पर मानवीय आवश्यवताम्रा की पूर्ति के लिए किया जाने वाला नियत्रण दूसरी कोटि में आता है ।
हम देखना यह है वि श्राधुनिक विज्ञान की सहायता मे मनुष्य प्रावृ तिवक्ति के रहस्य को जानकर विस प्रकार उसे प्रयुक्त कर सका है। जहाँ तक प्राकृतिक साधनो वा प्रश्न है, अधिकाश साधन कितना भी बाल व्यतीत हो जाय, ममार से समाप्त होने वाले नहीं हैं। उनना रूपातर, देशा तर या स्थानातर भले ही हो जाय ।