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आधुनिक विज्ञान और हिमा
निःसन्देह भूतपूर्व है |
रचनात्मक क्षेत्र में यद्यपि प्राचर्यजनक ग्राविष्कार विज्ञान द्वारा सम्पन्न हुए हैं, पर दुर्भाग्य की बात है कि विनाशकारी क्षेत्र मे भी इसकी सफलता कल्पनातीत है । प्रथम महायुद्ध के समय यौद्धिक विमानी का ग्राविष्कार हुआ, द्वितीय महायुद्ध मे ग्रांमिक परिमार्जन किया गया और ग्रद्यतन युग मे तो प्रत्यन्त शीघ्रगामी वायुयानो की सृष्टि हो गई जिसकी कल्पना से ही हृदय प्रकम्पित हो जाता है। सैनिक उड्डयन मे भी बी० प्रो० सी० टी० जैट पद्धति के वायुयान 500 मील की यात्रा प्रति घण्टे मे कर लेते है। जर्मनो ने द्वितीय महायुद्ध के समय मे बिना चालक के तीव्रगामी यानो की सृष्टि की थी जो 20 मील की ऊँचाई तक उड़ सकते थे। अमेरिका के सुपरफोर्टरेस व्योमयानो की न केवल उतनी गति है अपितु उन मे तो व्योम मे तेल तक पहुँचाया जाता है । दूरमारक तोपे, विमानभेदी तोपे, पनडुब्बियाँ और तारपीडो नौकाएँ आदि उल्लेखनीय हैं। रेडार के प्राविष्कार से प्राज का नागरिक अपरिचित नहीं । विपाक्त वायु व कीटाणुयुक्त वायु का श्राविकार नहारकारी विज्ञान की देन है। हीरोगिमा में गिराये गये अणुबम की सहारलीला को अभी हम भूले नही है । वर्तमान मे अमेरिका, रूस और इग्लैण्ड ने भी परमाणु बम तथा हाइड्रोजन वम वना लिये है । ये ग्रस्त्र बहुत ही खतरनाक और मानव व मानवता के नाश के लिए पर्याप्त है। रून द्वारा परीक्षित टी-एन-टी वम तो विनाशकारी अस्त्रो मे उपलब्ध अस्त्रो में सर्वोच्च है । ग्रव तो श्रणु द्वारा मानव जीवन की आवश्यकता की पूर्ति में प्रयुक्त यत्रोद्योग के लिए प्रयास प्रारम्भ हो चुके है।
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इस प्रकार विज्ञान के सर्वागीण व सर्व क्षेत्रीय विकास ने मनुष्य श्रम की वचत की है और सुख सुविधाएँ बढाई है ।