________________ 158 याधुनिक विज्ञान और अहिंसा किन्तु बड़े-बड़े युद्धो का, जिनमे करोड़ों की जान जाती है, लाखों बीमार और अपाहिज हो जाते हैं, धन-सम्पत्ति की अपार क्षति होती है, किस प्रकार प्रतिकार किया जा सकता है ? यह एक विकट समस्या है। परन्तु यह निश्चय है कि हिंसा की अपेक्षा अहिंसा अधिक क्षमतामालिनी है / अतएव उन से उग्र और प्रचण्ड से प्रचण्ड हिसा का भी अहिंसा से मुकावला किया जा सकता है। पर यह ध्यान रखना होगा कि औषध रोग के मुकाबले अधिक उग्र हो। अगर विश्व के प्रत्येक राष्ट्र मे निष्ठावान् गाति-सनिक पर्याप्त संख्या मे फैले होगे तो वे महायुद्धो पर भी विजय प्राप्त कर सकेंगे। उनके गांति प्रयास ऐसे युद्धो की भूमिका ही निर्मित न होने देगे। इसके लिए वे बड़े से वडा कप्ट झेलने को तत्पर होगे और जव यह होगा तभी समग्र विश्व मे अहिंसा की विजय वैजयन्ती फहराएगी / अहिंसा के भक्त ऐसे नाजुक प्रसंग पर सोते रहे तो अहिसा की शक्ति कैसे चमकेगी ? हिन्दुस्तान मे हुई शांति परिपद् मे हेनरी चक्रसंचुटजी नामक एक जर्मन प्रतिनिधि भी आया था। वह युद्ध का प्रवल विरोधी था और इसी कारण उसे अनेक मुसीवते झेलनी पड़ी। सन् 1922 मे उसे इसा अपराध मे 30 वर्ष की सजा हुई, मगर किसी कारण वह बीच मे ही सन् 1945 में छोड दिया गया / इस प्रकार अहिसा सिद्धान्त के लिए वह सभी कष्ट झेलता रहा। ___ ईसाइयो में क्वेकर नामक सम्प्रदाय के अनुयायी बडे शांतिवादी होते है। वे अहिंसा मे गहरी आस्था रखते है और शाकाहारी होते है / सन् 1940 में जब जापान और रूस के वीच संग्राम छिड़ा तो उन्हे सेना में भर्ती होने को विवश किया गया किन्तु नरसंहारक युद्ध उनके सिद्धान्त के विरुद्ध था। उन्होने साफ इन्कार कर दिया। कई लोगो को मृत्यु-दड भोगना पड़ा। कहते है, उनमे से कुछ लोग टाल्स्टाय की सहायता से अमेरिका में जा बसे और वहाँ खेती करके निर्वाह करने लगे, लेकिन अपने सिद्धान्त से विचलित न हुए। अगर अहिसा पालन के लिए सभी राष्ट्रो मे इस प्रकार तपस्या करने की क्षमता या जाए तो युद्धो का निवारण करना क्या कठिन वात है ? अणु-अस्त्र प्रयोग और परीक्षण के विरुद्ध भी सक्रिय अहिंसात्मक प्रतिकार किया जा सकता है। मगर इस प्रकार के प्रतिकार के लिए संगठित