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दर्शन द्वारा मैं कुछ हो सपा । उही की कृपा के कारण उत्साहित होकर मैं लेखनी मभाव सा। ___ श्रमण राघ के उपाध्याय प०प्रवर श्रद्धेय श्री हस्तीमल जी महाराज के चिन्तन और मनन भी मेरे लिए उचित पथ प्रदर्शन बन है। पूज्य सदगुरु वय व उपाध्याय जी महाराज की अनुपमेय प्रियागीलता का मैंन सदर ही साध्य दृष्टि से देया है। ___ अपन अभिन म्नही माथी माहित्यरत्न और शास्त्रीपद विभूपित श्री देवेद्र मुनि महाराज के सौजन्य को इमलिए विस्मृन नहीं कर सकता कि उनकी प्रति अस्वस्थ रह्ने के बावजूद भी, मैं उनम मनत महयोग लेता रहा हूँ। १० श्री नारा मुनिजी महाराज व वदीभिन ती चेतन मुनिजी महारान के स्नहास्पद व्यवहार तो म्मरणीय हो हैं।
जन प्रगत व यास्त्री नगर व वरिष्ठ मपाइप १० श्री शोभानद्र जी भारिल्ल ने इसे ध्यान से देपर सत परामर्श द्वारा सुदानाने म जो योग दिया है, वह हृदयपटन पर अक्ति रगा। मुप्रसिद्ध पनानिर व विश्व विद्यालय अनुदान प्रायाग के अध्यक्ष डा० दौमिह जी कोठारी, दिल्ली ने दम पटवर जो वहमूत्य विचार य्यात पिए है व मर उत्माह का वहा रह हैं। भारतीय गासन के माय विगिप्ट वैमानिक डा० टी० बी० परिहार साय मी मम्मति के प्रनिस्वरूप में उननी या प्रासा बहँ । सद्गुरु भक्त सम्माननीय वनील श्री रागनलाल जी मेहता, गागदा निवामी व चागपुरा (मैनाद) निवामी श्री टक्चद जी पारवाड या सह्याग प्रवि स्मरणीय रहगा जिहान अमूल्य मह्योग दार पानुलिपि का मुद्रण याय बनाया।
प्रत म मैं उन सभी सराय सह्यागिया का हदय ग ग्राभार मानता हैं, जिनरा वि मैन प्रस्तुन वृति मे सह्योग लिया है।
मैं वामला परता हूँ कि मानवता में विभाग यह पनि युछ भी पय प्रगाहा मगीता में अपना प्रयन सफ्त ममभूगा। यसन मी,
~गणेशमुनि शास्त्री मादडी (मारवाद)
'साहि यरल' विकार 1962