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यावनिक विज्ञान नीर अहिमा
है । इमी नैनिक सहायता के परिणामस्वरूप कामीर को सनस्या काफी उलझ गई है नव कि भारत दोनो गटो मे अलग एब नटस्थ व गान्निवादी राष्ट्र हे।
विश्व का राजनीतिक क्षितिज तनावपूर्ण है । दोनो गुटो के राष्ट्र गीता ने शस्त्रास्त्र वृद्धि मे मलग्न ह । भारत के प्रधान मत्री प. जवाहर लाल नेहरू और कई नेताओं ने मत प्रकट किया कि ग्रायुध निर्माण सन्यता के लिए घातक है। सयुक्त राष्ट्र संघ ने भी उन्होंने कई बार इसपर प्रतिबन्ध लगाने की अपील की, पर वह निप्प्रभ ही रही । इग्लष्ट तथा अमेरिका ने न केवल दृढना के नाय घातक शस्त्र निर्माण का समर्थन ही किया अपितु विश्वगान्ति का साधन भी माना । सम्भवतः यही शीतयुद्ध की नित्ति है । नयुक्न राष्ट्र सव के आलोचक सुरक्षा परिपद् की स्थायी गक्तियो के 'वीटो पावर का सन्त विरोध कर रहे है। किन्तु यदि यह पावर छिन गया तो वे शक्तियाँ मन चाहा करने लगेगी। जव आज स्थिति यहां तक पहुंची है कि वीटो के न छीने जाने पर भी प्राणविक प्रायुधो का खुल्लम-खुल्ला परीक्षण हो रहा है जो विश्वशान्ति के प्रति अपने कर्तव्यों को विस्मृत किए हुए है । कहना पडना है कि सघ स्वय अगत कूट नीति का साधन बन गया है।
विगत वर्षों में विश्वगान्ति की समस्या जितनी विकट हो गई हे उतनी पूर्व काल मे नही थी। सभी राष्ट्र सुरक्षा वजट बढाकर मैनिक गक्ति बढ़ा रहे है, ऐसी स्थिति मे तो मयुक्त राष्ट्र-सघ ही अाशा का केन्द्र शेष रह जाता है । सभी राष्ट्रो का यह प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिए कि यदि सस्कृति और मानव सभ्यता की रक्षा करनी है व सामाजिक जीवन मे सुखगान्ति का स्रोत प्रवाहमान रखना है तो राष्ट्रसंघ की शान्ति मूलक योजनायो को क्रियान्वित करने मे पूर्ण वल प्रदान करना चाहिए । 1955 की घटनाओं के बाद तो यह विचार और भी अधिक दृढ हो जाता है।
भारत ने किसी भी दल मे न रहकर के भी समस्त राप्ट्रो से मैत्री पूर्ण सम्बन्ध बनाये रखते हुए तटस्य नीति स्वीकार की है। भारत की धूलि के कण-कण से शाति की बनि गुजरित होती है। इस शान्ति-कामी भारत का तटस्य नीति से प्रथम तो बड़े राष्ट्रो मे विवाद व्याप्त हो गया था। पर ज्योंज्यो नीति सक्रिय स्वरूप में सामने पाती गई त्यों-त्यों न केवल इसका महत्त्व