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________________ विश्व-शाति के अहिंसात्मा उपाय 119 अहिंसा का मौलिक तत्व है। आज की राजनीति पर दुप्टि पेन्द्रित करन से विदित हुप्रापि पारस्परिक अविश्वास के कारण ही विषाक्त वातावरण की सृष्टि हुई है । ल्स मोर अमेरिका की प्रतिद्विता इसी का परिणाम है। प्राणविक जायुधा की प्रतिस्पर्धा अविश्वास की भावना की परिणति है। इन्ही गुदा से विश्वशान्ति सकट काल से गुजर रही है। एक गुट जस अमरिका साम्राज्यवाद का समथक है तो दूसरा गुट रूस आदि साम्यवाद का अनुयायी है । दोना ही अपने विचारा के प्रसार और प्रायुधा के निमाण म लीन हैं। राष्ट्र संघ की वठा म भी पारस्परिक दाव-पेंच इस प्रकार खेलत हैं कि रूम यदि किसी समस्या के समयन म मतदान करेगा तो अमेसिाठीक इसके विपरीत मभिमत व्यक्त करगा। इसस कभी-कभी सयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति भी सदेहास्पद हो जाती है । रूस न कई बार 'वीटो' का प्रयोग कर सघनी वायवाही स्थगित करा दी है। अमेरिखा ने लाल चीन को अभी तक मा यता नहीं दी है। दो गटा के पारस्परिक अविश्वास के कारण स्थिति कभी-कभी विगड जाती है। जमनी का भाग, बाल्टिव के राज्य, लाल चीन, दक्षिण पूर्वी एशिया के दश इण्डो चाइना, वमा, मलाया मादि पाप साम्यवाद के रग म रग हैं। शेप राष्ट्र समरिका के पक्ष में हैं। तभी तो पारिया का भगन्यायपूर्ण आधार पर न सुलझ सका। दक्षिण अमीषा म काले और गारा के पाच की साई बढ़ती ही जा रही है। काश्मीर की समस्या भी ज्या तो त्या सना है। ये सर पापसी गुटो को अविश्वस्त पत्ति के कारण ही राष्ट्र मघ को मफल नहीं हाने देते । इमम स्वार्थी राप्दा की शनि गुट बदी भा रहुत बडा कारण है । विराधी गुटा ती प्रादशिर सधियां भी मयुक्त राष्ट्र गप व Tम्मान का पक्का पहुँचाती है। 'नाटो' पौर 'मोटो' वे मघि मूलक निर सगठन भी विदागान्ति म बाधर हैं। जव तर दल है सर तर उरावराध यम भय है। प्रशाति ही पनिक संगठन न्योता देती है। प्रार नोएमा मधि है, जिन पर हस्ताक्षर बरनवाले देशा न यह रिपा दे पिम्प यदि उनम । किसी एव पर पाक्रमण परेगा तो वह सब पर माश्मण समभा जायगा मोर उस देश की राहायला जापगी। रमाप्रसार परिसाने नारा पड़ासी पारिस्तान फा र सहायता दर र मुखमाटोभारतमार तर पद्मा दिया -
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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