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अपनी वात
याज वा युग विनान प्रधान होने से विश्व इतिहास में नित नये महत्त्व पूण अध्याय जुटते जा रहे हैं । विनान द्वारा मानवीय सुख समृद्धि के पोषण में पपाप्न अभिवृद्धि हुई है। मध्यकाल में उच्च कोटि के शासक व श्रीसपन नागरिप जिन मुखोत्पादन उपादानो को परपना तक नही करते थे, वे अद्य नन मामाय नागरिक तप को मुलम हैं । आवश्यकता से अधिक साधो की समाप्ति कभी-कभी व्यक्ति को प्रमादी बना देती है तो कभी-कभी अल्प श्रम द्वारा अजित शक्ति विकराल रूप भी धारणारलेती है। वामनावर प्रत्येक वस्तु पी अभिवद्धि चाह भले ही प्रारम्भिर काल में अनुक्ल प्रतीत होने लग पर जब वह सोच्च विवास की चोटी पर पहुंचती है तो उसके परिणाम मनुष्य के लिए मुग्वद नहीं हाते । जरो विनान को ही ल, इमको प्रारम्भिक परिणतिया में मानव चमत्त मा पर इसके अकल्पिन ध्वमात्मा परि णामा मे सिहर भी उठा। भय, पाशवा और अविश्वास मे अाज विश्व का मानव प्राकुल है । वह चाह रहा है कि विमान का प्रयोग निर्माण के पम हो। मानवीय मरगुण और सहिष्णुता या युग अव परसट ले रहा है। भौतिर मुरापमा पर प्राध्यात्मिक तत्व बी और मनुष्य की सहन प्रेरणा गतिगीर हो रही है। जो पश्चिमी राष्ट्र प्रत्यक्ष जगत काही मय पुत्र मानते पाए धे, रे पर इतन ज्य गए है कि विवातावा अपगीय जगत के प्रति प्राप्ट औरह-यान-पान, रहन-मन में भी प्राव यातायों को मीमित
र रहे है । प्रत्पर यस्तु का ग्रौचित्य-अनौचिय वस्तुपरव न हारर व्यक्ति परप होता है, प्रति दृष्टिकोण पर अवलम्बित है। गायर-वापर तत्व भी व्यगिकी दृष्टि पर निभर है। विनान भी इगप्टि गे यदि मानव पो ममुनति के गिर पर पहुँगापर गुस, नाति, समृद्धि, महिष्णता पौर मह-अग्निल की मार उप्रेग्नि करता है ता वह मानवता के लिए वरदान मी परम्परा ग्यापिन या मोगा। यदि उत्तीग्न मे इमया उपयोग पिया गया नो गये पगितामा ने मानने या मोचने के लिए भी मानव मस्निप्प