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प्राचायंग्री तुन
किसी एक को भी निवाहना कठिन होता है और एक के निवाहने के प्रपल राबको ही निबाहना अनिवार्य हो जाता है। एक को पकड़कर दूसरों से व नहीं जा सकता। मान लीजिये कि कोई यह संकल्प करता है कि मैं पान रिश्वत नहीं लूंगा पौर किसी माल में मिलावट नहीं करूंगा। संक्रापू करने के लिए ही तो किया जायेगा, तोडने के लिए नहीं। पदे पदे प्रलो. माते हैं, पुराने संस्कार नीचे की ओर खींचते हैं। लोम का संवरण कर फटिन होता है । चित्त डावाडोल हो जाता है । वह जिन किन्ही दैवी शक्तिः पर विश्वास करता हो, उनसे शक्ति को माचना करता है कि मेरा यह मंक कही ट न जाये । में मिथ्याचरण को छोडकर सत्यावरण को और माता कही परीक्षा में डिग न जाऊँ । वैदिक शब्दों में वह यह कहता है-प्रग्ने, वापर प्रत्त चरिष्यामि, तच्छयम् तन्मे राष्प्रताम् इदमहमन्तात्सत्यममि--हे दोष को दूर करके पविन्न करने वाले भगवन् ! हे व्रतो के स्वामी, मैं वन में प्रावरण करने जा रहा हूँ। मुझको शक्ति दीजिये कि मैं उसे पूरा कर सकें उसको सम्पन्न कीजिये, मैं अनत को छोड़कर सत्य को अपनाता है। द्रत के निभ जाना, प्रलोभनो पर विजय पाना, सरल काम नहीं है। बड़े भाग्य। इसमें सफलता पिलती है। और यह भी निश्चित है कि ब्रती की गति एक बार पर ही अवरुद्ध न होगी। एक व्रत उसको दूसरे व्रत की ओर ले जायेगा । एक को पूरा करने के लिए युगपत् सबको अपनाना होगा; और जो भारम्भ परम प्रणु प्रतीत होता रहा हो, वह अपने वास्तविक रूप में बहुत बड़ा बन जायेगा। इसी से तो कहा कि स्वल्पमप्पाय धर्मस्प प्रायते महतो भयात् इमोलिए मैं रहता है कि वस्तुतः कोई भी यत प्रण नहीं है । पिसी एक छोटे-से श्रत को भी यदि ईमानदारी से निबाहा जाए तो वह मनुष्य के सारे चरित्र को
मार्य श्री तुलसी के प्रवचनों में तो बहुत लोग दीख पड़ते हैं, स्त्रियाँ भी यहत-मो दौम पड़ती है । सेठ-गाहकारों का भी जमपट रहना है। इसी से में घबराना है। हमारे देश में साघुपो के दरबार में जाने और उनके उपदेशों का पलेसार विधि से सुनने का बडा चलन है। ऐसे लोग न धावें मच्छा है।
बगे पहले उन लोगों को प्रभावित करना है जो समाज का नेतृत्व कर रहे हैं। 1 ३ वर्ग को पारष्ट करता है। इसी वर्ग में से शिक्षा. भम्यापक, माटर,