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मनप..रा. पनप
पा समाप पग पगार
पन्नों में ही रह गई।
चरित्र को गिरावट की गति प्रवाध है । इससे घबराकर कुछ लोगो का ज्यान स्व. श्री बुकमन और उनके 'मॉरल रिपार्मामेट' (नैतिक पुनरुत्थान) कार्यक्रम की ओर गया । कार्यक्रम भले ही अच्छा हो, पर हमारी सामाजिक प्रौर माथिक परिस्थितियां भिन्न हैं और हम कम्युनिज्म के विरोध के पाचार पर राष्ट्रीय चरित्र का उन्नयन नही कर सकते । उससे हमारा काम नही चल सक्ता हमारी अपनी मान्यताएं हैं, परम्पराएँ हैं, विश्वास हैं , हमारे मनुक्ल वही उपदेश हो सकते है जो हमारी अनुभूतियो पर अवलम्बित हो, जिनकी जहें हमारे सहस्रो वर्षों के माध्यात्मिक धरातल से जीवन-रस ग्रहण करतो
समाज संगठन का भारतीय व पश्चिमी प्राधार
पश्चिम के समाज-संगठन का माधार है--प्रतिस्पर्धा ; हमारा प्राधार है-सहयोग । हम सभूय समुत्थान के प्रतिपादक हैं , पश्चिम मे व्यक्तियो भौर समुदायों के अधिकारों पर जोर दिया जाता है; हम कर्तव्यो, धर्मों पर जोर देते हैं, इस भूमिका मे जो उपदेश दिया जायेगा, वही हमारे हृदयो में प्रवेश कर सकता है।
प्राचार्यश्री तुलसी ने इस रहस्य को पहचाना है । वह स्वयं जैन हैं, पर जनता को नैतिक उपदेश देते समय वह धर्म के उस मच पर खड़े होते हैं, जिस पर वैदिक, बौद्ध, जैन भादि भारत-सम्भूत सभी सम्प्रदायों का समान रूप से प्रधिकार है। वह बालब्रह्मचारी हैं, साघु हैं, तपस्थी हैं, उनकी वाणी में पोज है । इसलिए उनकी बातो को सभी श्रद्धापूर्वक सुनते हैं । कितने लोग उनके उपदेश को व्यवहार मे लाते हैं, वह न्यारी कथा है; परन्तु सुनने मात्र से भी कुछ लाभ तो होता ही है और फिर : रसरी पावत जात ते, सिल पर होत निसान ।
माचार्य श्री लोगो से जिन बातों का संकल्प कराने हैं, वे सब घूम-फिर कर पहिंसा या प्रस्तेय के अन्तर्गत हो पाती हैं । पतञ्जनि ने महिसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य को महारत कहा है और यह ठीक भी है। इनमें से