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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् समय दृष्टिगोचर होते थे, वे मध्याह्नकालमें देखनेमें नहिं आते, अर्थात् नष्ट हो जाते हैं। आत्मन् ! तू विचारपूर्वक देख ॥ ११ ॥ यजन्मनि सुखं मूढ ! यच दुःखं पुरःस्थितम् । तयोदुःखमनन्तं स्यात्तुलायां कल्प्यमानयोः ॥ १२॥ अर्थ-हे मूढ प्राणी ! इस संसारमें तेरे सम्मुख जो कुछ सुख वा दुःख हैं, उन दोनोंको ज्ञानरूपी तुलामें (तराजूमें) चढाकर तोलैगा, तो सुखसे दुःख ही अनन्तगुणा दीख पड़ेगा । क्योंकि यह प्रत्यक्ष अनुभवगोचर है ॥ १२ ॥ आगे भोगोंका निषेध करते हैं,___ भोगा भुजङ्गभोगाभाः सद्यः प्राणापहारिणः। सेव्यमानाः प्रजायन्ते संसारे त्रिदशैरपि ॥ १३ ॥ अर्थ-इस संसारमें भोग सर्पके फण समान हैं, क्योंकि इनको सेवन करते हुए देव भी शीघ्र प्राणान्त हो जाते हैं । भावार्थ-देव भी भोगोंके भोगनेसे मरकर एकेन्द्रिय हो जाते हैं, अतः मनुष्य तो नरकादिकमें अवश्य ही जावेंगे ॥ १३ ॥ आगे इस जीवकी अज्ञानता दिखाते हैं, वस्तुजातमिदं मूढ प्रतिक्षणविनश्वरम् । .जानन्नपि न जानासि ग्रहः कोऽयमनौषधः ॥ १४ ॥ अर्थ-हे मूढ प्राणी ! यह प्रत्यक्ष अनुभव होता है कि, इस संसार में जो वस्तुओंका समूह सो पर्यायोंसे क्षण क्षणमें नाश होनेवाला है । इस वातको तू जानकर भी अजान हो रहा है, यह तेरा क्या आग्रह (हठ) है? क्या तुझपर कोई पिशाच चढ गया है, जिसकी औषधि ही नहीं है ? ॥ १४ ॥ आगे अन्यप्रकारसे कहते हैं, क्षणिकत्वं वदन्त्यार्या घटीघातेन भूभृताम् । क्रियतामात्मनः श्रेयो गतेयं नागमिष्यति ॥ १५॥ ___ अर्थ-इस लोकमें राजाओंके यहां जो घड़ीका घंटा बजता है और शव्द करता है। सो सबके क्षणिकपनको प्रगट करता है। अर्थात् जगत्को मानो पुकार पुकारकर कहता है कि, हे जगतके जीवो! जो कुछ अपना कल्याण करना चाहते हो, सो शीघ्र ही करडालो नहिं तो पछताओगे । क्योंकि यह जो घडी वीत गई, वह किसी प्रकार भी पुनर लौटकर नहीं आवेगी । इसी प्रकार अगली घड़ी भी जो व्यर्थ ही खो दोगे। तो वह भी गई हुई नहीं लौटेगी? ॥ १५॥ यद्यपूर्व शरीरं स्याद्यदि वात्यन्तशाश्वतम् । युज्यते हि तदा कर्तुमस्याथै कर्मनिन्दितम् ॥ १६ ॥
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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