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________________ ज्ञानार्णवः। अनित्याः कामार्थाः क्षणरुचिचलं जीवितमिदं विमृश्योचैः खार्थे क इह सुकृती मुह्यति जनः ॥ ४९ ॥ अर्थ-यह संसार वड़ा गहन वन ही है, क्योंकि दुःखरूपी अमिकी ज्वालासे व्याप्त है। इस संसारमें इन्द्रियाधीन सुख है सो अन्तमें विरस है, दुःखका कारण है, तथा दुःखसे मिला हुआ है । और जो काम और अर्थ हैं सो अनित्य हैं, सदैव नहीं रहते । तथा जीवित है, सो विजुलीकी समान चंचल है । इस प्रकार समीचीनतासे विचार करनेवाले जो अपने खार्थमें सुकृती-पुण्यवान्-सत्पुरुष हैं, वे कैसे मोहको प्राप्त होवें ? कदापि नहीं। भावार्थ-इस संसारमें समस्त वस्तु दुःखरूप निःसार जानकर बुद्धिमानोंको अपने हितरूप मोक्षका साधन सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र धारणपूर्वक ध्यानका अभ्यास करना चाहिये । यह श्रीगुरुका उपदेश है ॥ ४९ ॥ इति श्रीज्ञानार्णवे योगप्रदीपाधिकारे श्रीशुभचन्द्राचार्यविरचिते प्रथमः सर्गः ॥ १ ॥ दोहा। श्रीयुत वीरजिनेन्द्रको, वंदों मनवचकाय । भवपद्धतिभ्रम मेटिक, करै मोक्षसुखदाय ॥१॥ आगे-इस प्राणीको ध्यानके सन्मुख करनेकेलिये संसारदेहभोगादिसे वैराग्य उत्पन्न कराना है, सो वैराग्योत्पत्तिकेलिये एक मात्र कारण वारह भावना हैं। इस कारण इनका व्याख्यान इस अध्यायमें किया जायगा । सो प्रथम ही इनके भावनेकी (वारंवार चिन्तवन करनेकी) प्रेरणा करते हैं शार्दूलविक्रीडितम् । सङ्गैः किं न विषाद्यते वपुरिदं किं छिद्यते नामयैः मृत्युः किं न विजृम्भते प्रतिदिनं द्रुह्यन्ति किं नापदः । श्वभ्राः किं न भयानकाः खपनवद्भोगा न किं चञ्चकाः __ येन खार्थमपास्य किन्नरपुरप्रख्ये भवे ते स्पृहा ॥१॥ अर्थ हे आत्मन् ! इस संसारमें संग कहिये धन-धान्य स्त्री-कुटुंबादिकके मिलापरूप जो परिग्रह हैं, वे क्या तुझे विपादरूप नहिं करते हैं ? तथा यह शरीर है, सो क्या रोगोंके द्वारा छिन्न रूप वा पीडित नहिं किया जाता है ? तथा मृत्यु क्या तुझे प्रतिदिन प्रसनेके लिये मुख नहिं फाड़ती है ? और आपदायें क्या तुझसे द्रोह नहिं करती हैं? क्या तुझे नरक भयानक नहिं दिखते? और ये भोग हैं सो क्या स्वमकी समान तुझे ठगनेवाले (धोखादेनेवाले) नहीं हैं। जिससे कि तेरे इन्द्रजालसे रचे हुए किन्नरपुरके समान इस
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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