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________________ २९२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अर्थ-पवनका प्रचार (चलना) शुक्लपक्षमें सूर्यके उदयमें प्रतिपदाके दिन विज्ञानी सम्यक् प्रकार यनसे शुभ अशुभ दोनोंको विचारै देखे ॥ ४० ॥ किस प्रकार विचारै सो कहते हैं, व्यस्तप्रथमे दिवसे चित्तोदेगाय जायते पवनः । धनहानिकृद्वितीये प्रवासदः स्यात्तृतीयेऽह्नि ॥ ४१ ॥ इष्टार्थनाशविभ्रमखपभ्रंशास्तथामहायुद्धम् । दुःखं च पञ्च दिवसैः क्रमशः संजायते त्वपरैः ।। ४२ ॥ अर्थ-पवन प्रथमदिवसमें व्यस्त कहिये विपरीत बहै तो चित्तको उद्वेग होता है और दूसरे दिन विपरीत बहै तो धनकी हानिको सूचन करता है, तीसरे दिन विपरीत चले तो परदेशगमन करावै ॥ ११ ॥ और पांच दिनतक विपरीत चलै तो क्रमसे इष्ट प्रयोजनका नाश, विभ्रम, अपने पदसे भ्रष्ट होना, महायुद्ध और दुःख ये पांच फल होते हैं. तथा इसी प्रकार अगले पांच पांच दिनका फल विपरीत अर्थात् अशुभ जानना ॥ ४२ ॥ वामा सुधामयी ज्ञेया हिता शश्वच्छरीरिणाम् । संही दक्षिणा नाडी समस्तानिष्टसूचिका ॥४३॥ अर्थ-जीवोंके वाई नाडी (चन्द्रसुर वा वायां खर) अमृतमयी सदा हितकारी जाननी और दाहिनी नाडी (सूर्यनाडी) समस्त अहितकी कहनेवाली संसारखरूप जाननी ॥ ४३ ॥ आर्या । अमृतमिव सर्वगात्रं प्रीणयति शरीरिणां ध्रुवं वामा। क्षपयति तदेव शश्वदहमाना दक्षिणा नाड़ी ॥ ४४ ॥ अर्थ-बॉई नाडी निरन्तर बहती हुई जीवोंके समस्त शरीरको अमृतकी समान तृप्त करती है और दाहिनी नाडी निरन्तर बहती हुई शरीरको क्षीण करती है ॥ ४४ ॥ संग्रामसुरतभोजनविरुद्धकार्येषु दक्षिणेष्टा स्यात् । ___ अभ्युदयहृदयवाञ्छितसमस्तशस्तेषु वामैव ॥४५॥ अर्थ-संग्राम कामक्रीडा भोजन आदि विरुद्धकार्योंमें तो दहिनी नाडी इष्ट है (शुभ है) और अभ्युदय और मनोवाञ्छित समस्त शुभकार्योंमें बाई नाडी शुभ है ॥ ४५ ॥ नेष्टघटनेऽसमर्था राहुग्रहकालचन्द्रसूर्याद्याः। क्षितिवरुणौ त्वमृतगतौ समस्तकल्याणदौ ज्ञेयौ ॥ ४६ । अर्थ-पृथिवीमंडल और वरुणमंडल ये दोनों पवन अमृतगति कहिये चन्द्र१ निःशेषानिष्टसूचिका इत्यपि पाठः ।
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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