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________________ २३२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अथ द्वाविंशं प्रकरणम् । आगे अन्यमती ध्यानकी सिद्धि यमनियमादिक योगसाधनसे कहते हैं और आचार्य महाराज कहते हैं कि यमनियमादिक तो पूर्वाचार्योंने अन्य वस्तुमें व्यापार रोक, खरूपमें लीन करनेके लिये कहे हैं । अन्यमती जिस प्रकार कहते हैं वैसे खार्थसिद्धि नहीं होती ऐसा वर्णन करते हैं । सो अन्यमतियोंका संस्कृतसूत्र जिसप्रकार है वह आचार्य महाराज कहते हैं। अथ कैश्चिद्यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधय इत्यष्टावङ्गानि योगस्य स्थानानि ॥१॥ ___ अर्थ-आचार्य महाराज कहते हैं कि कई अन्यमती "यम १, नियम २, आसन ३, प्राणायाम ४, प्रत्याहार ५, धारणा ६, ध्यान ७, और समाधि ८, इस प्रकार आठ अंग योगके स्थान हैं" ऐसा कहते हैं ॥१॥ इसी प्रकार अन्यने भी कहा है, जैसे: तथान्यैर्यमनियमावपास्यासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयः इति षट् ॥२॥ अर्थ-वैसे ही अन्य कई अन्यमतियोंने यम नियमको छोड़कर आसन १, प्राणायाम २, प्रत्याहार ३, धारणा ४, ध्यान ५ और समाधि ६ ये छह ही कहे हैं ॥ २ ॥ तथान्यैःइसी प्रकार फिर अन्यने अन्य प्रकार कहा है । उसका पाठःउत्साहान्निश्चयार्याित्सन्तोषात्तत्त्वदर्शनात् । मुनेछैनपदत्यागात् षड्र्योिगः प्रसिद्ध्यति ॥१॥ अर्थ-उत्साहसे, निश्चयसे, धैर्यसे, सन्तोषसे, तत्त्वदर्शनसे, देशके त्यागसे योगकी सिद्धि होती है ॥१॥ फिर कोई एक इस प्रकार कहता है एतान्येवाहुः केचिच्च मनास्थैर्याय शुद्धये । तस्मिन्स्थिरीकृते साक्षात्वार्थसिद्धिर्धवं भवेत् ॥२॥ अर्थ-कोई ऐसे कहते हैं कि ये यमादिक कहे हैं सो मनको स्थिर करनेके लिये तथा मनकी शुद्धताके लिये कहे हैं क्योंकि, मनके स्थिर होनेसे साक्षात्सर्वसिद्धि होती है ॥२॥
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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