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________________ ज्ञानार्णवः । २०९ परन्तु खेद है कि वे मायाचारसहित रहते हैं. सो बड़े नीच हैं और निर्लज्ज हैं. ऐसा नहीं 'विचारते कि हम तपस्वी होकर जो मायाचार रक्खेंगे तो लोग हमें क्या कहेंगे ? ॥ ६१ ॥ मुक्तेरविष्टुतैश्वोक्ता गतिऋज्वी जिनेश्वरैः । तत्र मायाविनां स्थातुं न स्वप्नेऽप्यस्ति योग्यता ॥ अर्थ — वीतराग सर्वज्ञ भगवान्ने मुक्तिमार्गकी गति सरल कही है. जनोंके स्थिर रहनेकी योग्यता खममें भी नहीं है ॥ ६२ ॥ ६२ ॥ इहाकीर्ति समादत्ते मृतो यात्येव दुर्गतिम् । मायाप्रपञ्चदोषेण जनोऽयं जिमिताशयः ॥ ६४ ॥ ant निःशल्य एव स्यात्सशल्यो व्रतघातकः । मायाशल्यं मतं साक्षात्सूरिभिर्भूरिभीतिदम् || ६३ ॥ अर्थ-व्रती तो निःशल्यही होता है । शल्यसहित तो व्रतका घातक होता है । और आचार्योंने मायाको साक्षात् - शल्य कहा है । क्योंकि माया अतिशय भयदायक है । भावार्थ- मायावीके अपने मायाचारके प्रगट होनेका भय बनाही रहता है, अतएव उसका (कपटीका ) व्रत सत्यार्थ नहीं होता ॥ ६३ ॥ उसमें मायावी अर्थ — इस मायाप्रपंचके दोषसे यह कुटिलाशय मनुष्य इस लोकमें तो अपयशको प्राप्त होता है और मृत्यु होनेपर दुर्गतिमें ही जाता है ॥ ६४ ॥ छाद्यमानमपि प्रायः कुकर्म स्फुटति स्वयम् । 1 अलं मायाप्रपञ्चेन लोकद्वयविरोधिना ।। ६५ ।। 1 अर्थ — कुकर्म ढकते हुए भी प्रायः अपने आप ही प्रगट हो जाता है; इसकारण दोनो लोकोंको बिगाडनेवाले इस मायाप्रपंचसे अलं ( बस ) है । भावार्थ - मायाचारसे निंद्य कार्य किया जाय और छिपाया जाय तो भी प्रगट हुए विना नहीं रहता । प्रगट होनेपर वह उभयलोकको विगाड़ता है; इस मायाचारीसे अलग रहना ही चाहिये ॥ ६५ ॥ क्क मायाचरणं हीनं क्व सन्मार्गपरिग्रहः । नापवर्गपथि भ्रातः संचरन्तीह वञ्चकाः ॥ ६६ ॥ अर्थ — मायारूप हीनाचरण तौ कहां ? और समीचीन मार्गका ग्रहण करना कहां ? इनमें बड़ी विषमता है. इसकारण आचार्य महाराज कहते हैं कि हे भाई ! मायावी ठग इस मोक्षमार्गमें कदापि नहीं विचर सकते ॥ ६६ ॥ बकवृत्तिं समालम्व्य वञ्चकैर्वञ्चितं जगत् । कौटिल्यकुशलैः पापैः प्रसन्नं कमलाशयैः ॥ ६७ ॥ १ माया, मिथ्या और निदान ये तीन शल्य हैं । 'निःशल्यो व्रती' ऐसा तत्त्वार्थसूत्रका विद्वान्त है। २७
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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