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________________ ज्ञानार्णवः । १६६ अर्थ-जो कोई बड़ा प्रतिष्ठित हो और ब्रह्मचर्यसे च्युत होजाय तो वहभी सबके द्वारा अपमानित किया जाता है । क्योंकि जैसे अग्निके वुझ जानेपर उससे किसीकोभी भय नहिं रहता उसी प्रकार ब्रह्मचर्यसे भ्रष्ट होनेपर बड़े पुरुषकाभी किसीको भय नहिं रहता । अर्थात् उसका अपमान हरकोई करसकता है ॥ ३३ ॥ विशुद्ध्यति जगद्येषां स्वीकृतं पादपांसुभिः । वश्चिता बहुशस्तेऽपि वनितापाङ्गवीक्षणात् ॥ ३४॥ अर्थ-जिन महापुरुषोंके चरणोंकी रजसे यह जगत् पवित्र हो जाता है वेभी प्रायः स्त्रियोंके कियेहुए कटाक्षोंके देखनेसे वश्चित (नष्ट ) हो गये हैं। ऐसे महापुरुषोंकी कथा जगतमें तथा शास्त्रोंमें बहुत हैं ॥ ३४ ॥ तपाश्रुतकृताभ्यासा ध्यानधैर्यावलम्बिनः । श्रूयन्ते यमिनः पूर्वं योषाभिः कश्मलीकृताः ॥ ३५ ॥ अर्थ-जिनके तप और शास्त्रोंका अभ्यास है तथा जो ध्यानमें धैर्य(दृढता)का अवलंबन करनेवाले हैं ऐसे मुनिभी स्त्रियोंसे कलंकित हुए सुने जाते हैं, अन्य क्षुद्र पुरुषोंका तो कहनाही क्या ॥ ३५॥ उद्यते यत्र मातङ्गैनगोत्तङ्गैजलप्लवे । तत्र व्यूढा न संदेहः प्रागेव मृगशावकाः ॥ ३६ ॥ अर्थ-क्योंकि जिस जलके प्रवाहमें पर्वतसरीखे बड़े २ हाथीभी बह जाते हैं, उसमें यदि पहिले मृगोंके बच्चे बह गये तो इसमें क्या संदेह है। ।। ३६ ॥ __मालिनी। इह हि वदनकतं हावभावालसाढ्यं मृगमदललिताकं विस्फुरदुधूविलासम् । क्षणमपि रमणीनां लोचनैर्वीक्ष्यमाणं जनयति हृदि कम्पं धैर्यनाशं च पुंसाम् ॥ ३७॥ ___ अर्थ-इस जगतमें हावभाव आदि विलासोंसे भरे हुए, कस्तूरीकी सुन्दर बिन्दीवाले तथा विशेषताके साथ चंचल हैं भौंहके विलास जिसमें ऐसे स्त्रियोंके मुखरूपी कमलको क्षणभरभी 'नेत्रोंसे देखनेपर वह पुरुषोंके हृदयमें कम्प उत्पन्न करके धैर्यको नष्ट कर देता है ॥ ३७॥ स्रग्धरा । यासां सीमन्तिनीनां कुरबकतिलकाशोकमाकन्दवृक्षाः . . प्राप्योचैर्विक्रियन्ते ललितभुजलतालिङ्गनादीन्विलासान् । है
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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