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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् __ अर्थ-जिस प्रकार सुवर्णादि धातुओंका मलके साथ अनादि संबंध है, उसी प्रकार जीवोंका कर्ममलसे अनादिकालका संबंध है ऐसे जानना चाहिये ॥ २३ ॥ द्वयोरनादिसंसारः सान्तः पर्यन्तवर्जितः। वस्तुखभावतो ज्ञेयो भव्याभव्यागिनः क्रमात् ॥ २४ ॥ अर्थ-भव्य अभव्य दोनोंहीको संसार आदिरहित है, परन्तु भव्यका संसार तो अन्तसहित है (क्योंकि इसको मुक्ति होती है ।) और अभव्यका अन्तरहित है, (क्योंकि इसको मुक्ति नहीं होती)। ऐसा वस्तुखभावसेही जानना चाहिये । इसमें कोई अन्य हेतु नहीं है ॥ २४ ॥ चतुर्दशसमासेषु मार्गणासु गुणेषु च । ज्ञात्वा संसारिणो जीवाः श्रद्धेयाः शुद्ध दृष्टिभिः ॥२५॥ अर्थ-संसारी जीवोंको चौदह जीवसमास, चौदह मार्गणा और चौदह गुणस्थानों में जानकरके सम्यग्दृष्टियोंको श्रद्धान करना चाहिये । भावार्थ-संसारी जीवोंके भेद बहुत हैं, वे कहांतक कहे जावें, इस कारण यहां संक्षेपमेंही कह दिया गया है कि; जीव समास, मार्गणा, गुणस्थानों में जीवोंका विशेष स्वरूप जानकर श्रद्धान करना चाहिये । जीव समासादिका विशेष खरूप गोमठसारादि अन्य ग्रन्थोंसे जानना चाहिये ॥ २५ ॥ संक्षेपसे जीवतत्त्वका वर्णन करके अजीव तत्त्वका वर्णन करते हैं, धर्माधर्मनभाकालाः पुनलैः सहयोगिभिः। द्रव्याणि षट् प्रणीतानि जीवपूर्वाण्यनुक्रमात् ॥ २६ ॥ अर्थ-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल योगीश्वरोंने ये छह द्रव्य अनुक्रमसे कहे हैं ॥ २६॥ तत्र जीवाद्यः पञ्च प्रदेशप्रचयात्मकाः । कायाः कालं विना ज्ञेया भिन्नप्रकृतयोऽप्यमी ॥ २७॥ अर्थ-उन छह द्रव्योंमें एक कालको छोड़कर जीवादिक पांच द्रव्य अनेक प्रदेशास्मक होनेके कारण 'काय' कहे जाते हैं । कालाणु एकही प्रदेशखरूप है, अतः उसे 'काय' नहीं कहा । इन सब द्रव्योंको भिन्न २ खभाववाले जानना चाहिये ॥ २७ ॥ __ अचिद्रूपा विनाजीवममूर्ती पुद्गलं विना। पदार्था वस्तुतः सर्वे स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकाः ॥ २८ ॥ अर्थ-इन छह द्रव्योंमेंसे जीवके विना अन्य पांच अचिद्रूप हैं अर्थात् चेतनारहित अजीव द्रव्य हैं । और पुद्गल द्रव्यके विना अन्य पांच अमूर्त हैं । स्पर्श- रस, गन्ध, वर्ण, गुण इनमें नहीं है । पुद्गल इन गुणोंसहित मूर्त है । तथा इन द्रव्योंको. पदार्थ भी कहते हैं, क्योंकि ये उत्पाद, व्यय, धौव्य-सहित हैं । पदार्थका खरूप द्रव्य पर्याया
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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