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________________ (४) 'संधायमाला., . च०॥५॥ श्रुत आराधन साचवो॥चि॥ योग वहन उपधान ॥ च ॥ शुक्लध्यान सूधु धरो॥चि॥ श्री आंबिल वर्षमान ॥ च० ॥६॥ चौंद सहस्स.अणगारमा । चि॥ धन धन्नो'अणगार ॥ च ॥ खयमुख वीर प्रशंसी चि॥ खंधक मेघकुमार ॥च॥ इति नवम भावना ॥ . . ॥दोहा॥. . . . . : 1 • | मन दारु तननालि करि, ध्यानानल सलगांवि ॥ कर्मकटक जेदण जणी, गोला ज्ञान चलावि ॥१॥ मोहराय मारीकरी, उंचो चढी अवलोय ॥ त्रिजुवन मंगप मांमणी, जिम परमानंद होये ॥॥ .. ॥ ढाल दशमी॥ . . . ॥राग गोमी, जंबूद्वीप मकार ॥ ए देशी ॥ दशमी लोक खरूप रे, ना वन जावीयें, निसुणि गुरु उपदेशथी ए ॥१॥ उर्ध्वपुरुष आकार रे, पग पहूखा धरी, कर दोउ कटि राखियें ए॥२॥ण आकारे लोकरे, पुद्गल पूरी, जिम काजलनी कूपली ए ॥३॥ धर्माधर्माकाश रे, देश प्रदेश ए, ॥ जीव अनंतें पूरी ए ॥ ४॥ सात राज.देशोन रे, उई, तिरिय मली, अधोलोक सात साधिकू ए ॥५॥ चौदराज त्रसनामी रे, सजीवाल य, एक रडू दीर्घ विस्तरू ए॥६॥ नर्वसुरालय सार रे, निरय जुवन नीचें, नामें नर तिरि दो सुरा ए॥॥ द्वीप समुष असंख्य रे, प्रनु मुख सांजली, राय कृषि शिव समजी ए ॥७॥ लांबी पोहोली पणयाल रे, लखजोयण सही, सिकशिला शिर उजली ए॥ए॥ ऊंचा धनुसय तीन रे, तेत्रीश साधिके, सिक योजननें बेहो ए॥१॥ अजर अमर निकलंक रे, नाण दंसण मय, ते जोवा मन गह गहे ए॥११॥इति दशम नावना ॥ ॥दोहा॥ H ॥ वार अनंती फरसी, गली वाटक न्याय ॥ नाणे विना नवि संज रे, लोक ब्रमण जमवाय ॥१॥ रत्नत्रय त्रिहुं नुवनमें, उसह जाणी द याल ॥ बोधि रयण काजे चतुर, आगम खाणि संजाल ॥२॥". ॥ढाल अगीरमी॥ . . . . . ॥राग खंनातीं ॥ दश दृष्टांते दोहिलो रे, साधो मणुत्र जमारो रे॥ हो जंबर फूलज्यु रे, आरज घर अवतारो रे ॥ मोरा जीवन रें, बोधिः जावना ग्यारमीरे, जावो हृदय मजारो रे ॥ मो० ॥१॥ए आंकणी॥ | -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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