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बारजावनानी सद्याय,
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॥ ढाल आझमी॥ ॥ उलूनी देशी ।। श्राहमी संवर नावनाजी, धरी चितसुं एक तारस मिति गुप्ति सूधी घरोजी, आपो आप विचार ॥ सलूणा, शांति सुधारस चाख । ए आंकणी ॥ विरस विषय फल फूलडेजी, अटतो मन अलि रा ख ।। स ॥१॥ लाज अलानें सुख उखेंजी, जीवित मरण समान ॥ शत्रु मित्र सम नावतो जी, मान अने अपमान ॥ स ॥२॥ कहीयें परिग्रह बगंगशुं जी, ले| संयम नार ॥ श्रावक चिंते हुं कदा जी, करीश संथा रो सार । स॥३॥ साधु आशंसा श्म करे जी, सूत्र नणीश गुरु पा स ।। एकल मन प्रतिमा रही जी, करीश संलेषण खास ॥ स ॥४॥ सर्व जीवहित चिंतवे जी, वयर मकर जगमित्त ।। सत्य वयण मुख नां खियें जी, परिहर परतुं वित्त ।। स॥५॥काम कटक नेदण नणी जी, धर तुं शीलसनाह ।। नवविध परिग्रह मूकतां जी, लहियें सूख अथाह ॥स ॥६॥ देव मणु उपसर्गशुंजी, निश्चल हो सधीर ।। बावीश प रिसह जीपीयें जी, जिम जीत्या श्रीवीर ॥सणाजा इति अष्टम भावना ।।
॥दोहा।। । , , ॥ दृढ प्रहारि दृढ ध्यान धरी, गुणनिधि गज सुकुमाल | मेतारज मद न बमो, सुकोशल सुकुमाल ॥१॥ म अनेक मुनिवर तस्या, उपशम संवर नाव ॥ कग्नि कर्म सवि निर्जस्यां, तिण निझार प्रस्ताव.॥२॥ . . ॥ ढाल नवमी।
.. ॥राग गोडी, मन जमरा रे ॥ ए देशी.॥ नवमी निर्जर नावना ।। चित चेतो रे । आदरो व्रत पञ्चरकाण ॥ चतुर चित चेतो रे ॥ पाप आं लोचो गुरु कने । चि ॥ धरिये :विनय सुजाण ॥ च ॥१॥ वेयावच्च बहुविध करो॥ चि॥ पुर्वल वाल गिलान ॥ च ॥ आचारज वाचक तणो । चि॥ शिष्य साधर्मिक जाण ॥ च ॥ २॥ तपसी कुल गण सं घनो ।। चि॥ थिविर प्रवर्तक वृद्ध ।। च ।। चैत्य नक्कि वहुनिझरा ।। चि॥ दशमे अंग प्रसिक।चणा३॥ उन्नय टंक आवश्यक करो॥चि॥ सुंदर करि सद्याय ॥ च ॥ पोसह सामायिक करो॥ चि॥ नित्य प्रत्यें नियमन जाय ||चणाध कर्मसूडन कनकावली ॥ चि॥ सिंहानिक्रीडित दोय ।। च ॥ श्रीगुण रयण संवत्सरू ॥ चिणा साधु पलिम दश दोय ॥
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