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श्रीनरेंश्कृत मृगापुत्रनी सद्याय,
( ३६७ )
|| मा० ॥ घणां मूलां काढियां, कापे तेहनी काय ॥ मा० ॥ क० ॥ ॥ मा० ॥ फूल जुवारा चंटता, फूलां सेज विढाय ॥ मा० ॥ सुख जोग वियां तेहने, कांटा चांपे काय ॥ मा० ॥ कण् ॥ १० ॥ मा० ॥ कोमल कलियां फूलनी, तोडी गूंध्या हार ॥ मा० ॥ शामली वृझें वांधीने, दे चाबुकना मार ॥ मा० ॥ ० ॥ ११ ॥ मा० ॥ वचनचूक नर जे हता, माया कप टी जेह ॥ मा० ॥ पकडी पठाडे पर्वते, खंग खंग करे तस देह ॥ मा ॥ क० ॥ १२ ॥ मा० ॥ घरमें कलह करावती, काथा कबली नार ॥ मा० ॥ परमाधामी तेहना, मुखमें नरे अंगार ॥ मा० ॥ क० ॥ १३ ॥ मा० ॥ कुहाडे करि कापियां, लीलां महोटां काड ॥ मा० ॥ परमाधामी तेनुं, मुस्तक ठेदे फाड ॥ मा० ॥ क० ॥ १४ ॥ मा० ॥ कोश कोदाली पावडा, भूमि विदारण जेद ॥ मा० ॥ माग्यां जे कहि आपियां, पामे कष्टज ए ह || मा० ॥ ० ॥ १५ ॥ मा० ॥ पूज्य कही ने पूजावता, करता. अनरथ मूल ॥ मा० ॥ कामिनी गर्न मलावता, परोवी दिये त्रिशूल ॥ मा० ॥ कं० ॥ १६ ॥ सा० ॥ पापप्रभावथी उपन्यो, कुंभीपाकनी मांय ॥ मा० ॥ नपर चूंटे कागडा, मांही कीडा खाय ॥ मा० ॥ कण् ॥ १७ ॥ सा० ॥ इ णिया दुक्का पीवतां, जलादिकथी जीव ॥ मा० ॥ तातो लोह तपावी ने, मुख चांप्या करे रीव || मा० ॥ क० ॥ १८ ॥ सा० ॥ मानवनो जव पामिने, अव जाउं नहिं हार ॥ सा० ॥ नरेंद्रतणी अनुमति लही, पा मुं जवनो पार ॥ सा० ॥ क० || १५ ||
॥ ढाल आवमी ॥
॥ मान न कीजे रे मानवी | ए देशी || पापकरमथी रे प्राणिया, उप न्या नरक मकार || परमाधामी रे तेहने, दणतां करे रे होकार || १|| की धां कर्म न बूटियें, किहां राणा किहां राव | हरिहर ब्रह्म पुरंदरा, ते पण हु या खराव ॥ की धां कर्म न बूटियें ॥ २ ॥ किया निर्बंबन ढोरने, मांज्या तेणे रे बांध || गगडावे गिरि उपरे, काढे तेहनी रे सांध | कीधां० ॥ ३ ॥ किनी गीत रेनिनी, चलम जरी चकमोल || गांजा तमाकु रे पीत्र ता, पाम्या नरकनी पोल || कीधां ॥ ४ ॥ साधुजनने संतापिया, निंदा कीधी अपार ॥ ताते यंत्रे तस वांधिने, दे मुरकी रे मार || की० ॥ ॥ ५ ॥ विष देइ माणस मारियां, करि करि क्रोध प्रचंम ॥ परमाधामी रे