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________________ (३६६ ). : सद्यायमाला.. सिंचाणा पंख परें रे, बतकने ज्युं धरे साय रे ॥ त्युं रूपधारी मुऊ प्रत्यें रे, ऊपट पकडे धाय ॥ ज० ॥ ए ॥ वार्धिक जिम वृने रे, बेद करे वसु धार रे || बेदियो तिम अंग जननी, देव अनंती वार ॥ ज० ॥ १० ॥ थाप मूटी लातसें रे, मारियो विमासि रे ॥ लोह जिम मुऊ चूर्ण की धुं, जाउं किai तिहां नाशि ॥ ज० ॥ ११ ॥ लोहकार जिम लोहने रे, जाले श्रग्निमकार रे ॥ जालियो तिमांग सघलो, कूटियो घनसार ॥ ज० ॥ १२ ॥ कल कलतो तरुवो सही रे, पावे महोढुं फार रे ॥ मांस का पीदिये मुने, एम अनंती वार ॥ ज० ॥ १३ ॥ पूर्वे में सुरापान की धुं महाकर्म घोर रे || संजारीने मुफ रुधिर काढी, पावे महोढुं फोर ॥ ज० ॥ १४ ॥ इसि राची जे कर्म बांध्यां, तेणें ए दुःखपाय रे ॥ हवे न रा चूं माय मोरी, नरेंद्र श्रुत चित्त लाय ॥ ज० ॥ १५ ॥ 1; ॥ ढाल सातमी ॥ ॥ जवि जीवो, करणी तो कीजें चित्त निर्मली ॥ ए देश ॥ माजी मोरी करणी तो करशुं चित्त निर्मली ॥ ए यांकणी ॥ माजी मोरी मोह मिथ्यातकी निंद में, सूतो काल अनंत || मा० ॥ परमाधामी वंश पढ्यो, कहेतां न वे अंत ॥ माजी मोरी० ॥ क० ॥ १ ॥ मा० ॥ राग तथा रसिया हता, सुन सुन करता तान ॥ मा० ॥ धर्म कथा नव सांजली, तेहना कापे कान ॥ मा० || क० || २ || मा० ॥ परनारीना रूपनो, विषय वखायो जोय || मा० ॥ देवगुरु निरख्या नहिं, तेहनी थां ख्यो काठे दोय || मा० ॥ क० ॥ ३ ॥ सा० ॥ सूरनीगंध संध्या घ णा, गुठा फूल फराक ॥ मा० ॥ अत्तर फूलेल पडावियां, बेदे तेहनां नाक ॥ मा० ॥ क० ॥ ४ ॥ मा० ॥ गाढा रथमें बेसिने, बेल दोडाया वाट ॥ मा० ॥ अग्नि तपावी धोंसरुं, देश दोड़ावे गाढ ॥ माप ॥ क० ॥ ५ ॥ मा० ॥ रस्ते लूंट्या कश्कने, करि करि क्रोध अन्याय || मा०॥ मांक ड मास्या तेहने, पीले घाणीमांय || मा० ॥ क० ॥ ६ ॥ मा० ॥ काचा कुंवल फल नदियां, गाजल मूला कंद ॥ मा० ॥ बंधे मस्तक ऊपना, पीड्या करे कंद ॥ माप ॥ क० ॥ ७ ॥ मा० ॥ जूठ वचन बोल्या घणां. कूड़ कपटनी खांण || मा० ॥ परमाधामी तेहनी, जीज काढ़े जड ताण ॥ मा० ॥ ० ॥ ८ ॥ सा० ॥ वनस्पति बेदन करी, काप्यां तरु वनरा I 1
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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