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(३५)
सद्यायमाला
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नेम कुमारो रे ॥१॥जयो जयो जिन बावीशमो॥.ए श्रांकणी ॥ चौद | खपन राणिये पेखियां, करवो स्वप्न तणो विचार रे ॥ श्रावण शुदि दिन पंचमी, प्रजु जन्म हु जयकार रे ॥ जय० ॥२॥ सुरगिरि उत्सव सुर करे, जिनचं कला जिम वाधे रे । एक दिन रमतां रंगमां, हरि आयुध सघलां साधे रे ।। ज॥३॥ खबर सुणी हरि शंकिया, प्रजु लघुवयथ की ब्रह्मचारी रे ॥ बलवंत जाणी.जिननें, विवाह मनावे मुरारी रे ॥ज० ॥४॥ जन ले जादव श्राग्रहें, जिन आव्या तोरण बार रे । उग्रसेन घर आंगणे, तव सुणोयो पशुपोकार रे॥ज ॥५॥ करुणानिधि रथ फेरव्यो, नवि मान्यो कहेण केहनो रे ॥ राजुलने खटके घj, नव नवनो स्नेह डे जेहनो रे ॥ ज॥६॥ दान दे संयम लियो, श्रावण बह अजुआली रे ॥ चोपन दिन बद्मस्थ रही, रघु केवल कर्मने गाली रे ॥जगा॥ आशो वदि अमावासें, दे देशना प्रजुजो सारी रे॥प्रतिबोध पामी व्रत लियो, रहे नेम राजुल नारी रे ॥ ज०॥ ॥ श्राषाढ शुदि दिन अष्टमी, प्रनु पाम्या पद निर्वाणो रे॥ रैवतगिरिवर उपरें, मध्यरात्रिये ते मन आणो रे ॥ ज०॥ ए॥श्री पार्श्वनाथ थया पहेला, क्यारे नेम थया निरधारो रे ॥ साडा सातसें त्याशी हजार वर्षे, चित्तमांदे चतुर विचारो रे ।। जा१॥ सहुको जिननां आंतरां, मन देशमुनिवर वांचे रे॥हां पूरणं व्याख्यान सातमुं, सुणी पुण्यनंमारने सांचे रे ॥ ज० ॥१९॥
; , ॥ अथाष्टम व्याख्यान सद्याय प्रारंजः॥ ॥ ढाल दशमी । बे वे मुनिवर विहरण पांगवाजी।। ए देशी॥ श्दा कुलूमें नानि कुलघर घरे जी, सोहे मरुदेवी तस नार रे॥, अषाढ वदि सुरलोकश्रीचवी रे, अवतस्यिा जग सुखकार रे॥१॥प्रणमोनविजन आदि जिणेसरु रे॥ ए.आंकणी॥ गज़ वृषजादिक चौद सुहणे जी, दीगं माडि ये माऊम रात रे ॥ सुपन अर्थ कहे नानि कुलघरुजी, होशे नंदन बीर विख्यात.रे ॥प्रा॥२॥ चैत्र अंधारी आवमें जनमिया जी, सुर मलीउ त्सव सुरगिरि कीधरे॥ दीगे वृषन ते पेलें सुपनें जी, तेणें करी नाम रुपन ते दीधरे ॥३॥ वाधे षनजी कल्प वेलि ज्यु रे, दर्शन दी सकल स मृधिरे|बालक रूप करीने देवताजी, खेले जिन साथे हित वृद्धि रे॥प्र० ॥मा कुमरी सुनंदा बीजी सुमंगला जी, जिनने परणावी हरि आय रे ॥
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