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श्रीपर्युषणपर्वना नव व्याख्याननी सद्याय. (३५)
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धारे जी॥ कार्तिक नदि श्रमावास्या दिवसे, पहोता मुक्ति मकारेंजी॥ १७॥ पर्व दीवाली तिहाथी प्रगटयुं, कीधो दीप उद्योत जी ॥राय मली ने तिणे प्रजाते, गौतम केवल होत जी ॥ १५ ॥ ते श्रीगौतम नाम जपं तां, होवे मंगलमाल जी । वीरमुक्ते गयाथी नवशें, एंशी वरसे सिद्धांत जी ॥ २०॥ श्री क्षमाविजय शिष्य बुध माणक कहे, सांजलो श्रोता सु जाण जी ।। (कल्पसूत्रनी पुस्तक रचना देवादिगणे कीधा जो.) चरम जिणेसर तव ए चरित्रे, मूक्युं हुं वखाण जी ॥ १॥ ।
॥अथ षष्ठ व्याख्यान द्वितीय सद्याय प्रारंजः॥ ॥ बाल आपसी ॥ देशी नमरानी काशी देश बनारसी ॥सुखकारी, रे॥ यश्वलेन राजानः॥प्रजु उपकारी रे॥ पट्टराणी वामा सती ।। सु॥ रूपें रंज समान ॥ प्रण॥१॥ चौद स्वपन सूचित नलां ॥ सु॥ जन्म्या पास कुमार ॥ ॥ पोप वदि दशमी दिने । सु॥ सुर करे उत्सव तार ॥ ॥२॥ देहमान नव हाथर्नु ॥ सु०॥ नील वरण मनोहार ॥ ॥ अनुक्रमें जोवन पामिया ॥ सुन । परणी प्रनावती नार ॥ प्र०॥३॥ कम तपो मद गालीयो ॥ सु ॥ काढयो जलतो नाग ॥ ॥०॥ नवकार सुणावी ते कियो। सु०॥ धरणराय महानाग ॥ प्रण ॥४॥ पोप वदि एकादशी ॥ सु० ॥ व्रत लेश विचरे स्वाम ॥4॥ वडतलें काजस्तग्गे रह्या ।। सु०॥ मेघमाली सुर साम ॥ ॥५॥ करे उपसर्ग जलवृष्टिनो । सु० ॥ आव्युं नासिका नीर ॥०॥ चूक्या नहिं प्रजु ध्यानथी । सु ॥ समरथ साहस धीर ॥ ॥६॥ चैत्र वदि चोथने दिने ।। सु॥ पाम्या केवल नाण ॥ ॥ चनविह संघ थापी करी ॥ सु०॥ याव्या समेतगिरि सण ॥॥७॥ पाली आयु शो वर्षतुं । सु०॥ पहोता मुक्ति महंत ॥ ॥ श्रावण शुदि दिन अष्टमी सुण ॥ कीधो कर्मनो अंत ॥ ॥॥ पास वीरने आंतरं ॥ सु०॥ वर्ष अढीशे जाण ॥ प्र॥ कहे माणक जिन दासने ॥ सु॥ की कोटि कल्याण ॥प्र०॥ ए॥
॥श्रथ सप्तम व्याख्यान सद्याय प्रारंजः॥ ॥ ढाल नवमी । हो मतवाले साजनां ॥ ए देशी ॥ सोरि पुर समुन विजय घरे, शिवादेवी कुखें सारो रे॥कार्तिक वदि बारश दिने, अवतस्या
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