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(३१)
सद्यायमाला.
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जेवंडां जी, परनां जोवे रे बिद्र ॥ बीलां सरिखां आपणां जी, नवि देखे एम. प्राह रे || प्रा० ॥ ॥ ए ॥ पर अवगुण मुखें उच्चरी जी, कांइ वखा र प || परजवें सहेतां दोहिलां जी, परनिंदानां पाप रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १० ॥ एक देव एक गुरुजणी जी, हीले दीना चार ॥ केवल ज्ञानीयें एम कनुं जी, तेहने घणो संसार रे ॥ प्रा० ॥ श्र० ॥ ११ ॥ परनी तांते बापडो जी, मुधा गूंथे रे जालं ॥ नरंय तिरिय गति दुःख सहे जी, रुले अनंत काल रे ॥ प्राणं ॥ ० ॥ १२ ॥ परा यां पातक ते धोवे. जी, जे निपजावे तांत ॥ पिशुनपणुं वली परहरि जी, परना अवगुण शांत रे ॥ प्रा० ॥ श्र० | १३ || नरजव निरर्थक नीर्गमे जी, धर्म मर्म नवि जाए | आप पडे पापें नस्यो जी, तस जीवित प्रमाण रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १४ ॥ मेतारथ मुनिराजीयो जी, | शंमरस तपो रे निधान ॥ परिसह रीष विना सही जी, पामियो मुक्ति प्रधान रे || प्रा० ॥ आप ॥ १५ ॥ खंधक सूरि तथा यंति जी, क्षमा त णारे जॅकार ॥ घाणी घाली पीलतां जी, न ल्युं चित्त लगार रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १६ ॥ कूरगड हुने केवली जी, कूडी बांकी रीश ॥ प्रिया शूनी मूकी करी जी, पहेलुं नामे शीश रे ॥ प्राण ॥ ० ॥ १७ ॥ गिरु गय सुकुमालु जी, न कस्यो कोप लगार ॥ ससरे शिर ऊपर धरया जी, धगधगता अंगार रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १८ ॥ दुर्मुख वयण सुणी करी जी, प्रसन्न चंद्र कृषिराय ॥ कोपे चड्यो कर्मे नड्यो जी, बांध्युं नरकनुं आय रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १ ॥ मस्तकलोच देखी करी जी, वलीयो मुनि मनमांय ॥ क्रोध गयो, निर्मल थयो जी, लहि केवल तेथे ठाय रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ २० ॥ क्षमा खड्ग नहिं जे कने जी, बे दुःखिया सं सार ॥ क्रोधयोधशुं जूकता जी, केम नवि पामे हार रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ २१ ॥ तप विसे रीवें करी जी, स्त्रीधी शियल विनाश ॥ मानें विनय विणाशियो जी, गर्वे ज्ञान विनाश रे ॥ प्रा० ॥ श्र० ॥ २२ ॥ जेहनुं मन उपशमें रमे जी, नहिं तस दुःख दंदोल ॥ कहे शिष्य उवद्यायनो जी, मुनि लक्ष्मी कल्लोल रे || प्रा० ॥ श्र० ॥ २३ ॥ ',
॥ अथ श्री अर्जुनमालीनी सद्याय प्रारंभः 1. किसके चेले किसके पूत, श्रतमराम एकिले अवधूत ॥ जीन जा