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________________ श्री अर्हन्नक मुनिनो रास. (३०३) - - - - - ॥ ढाल त्रीजी॥ ॥जंबूछीपना जरतमां ॥ ए देशी॥ ते तरुणी चित्त चिंतवे, पीयु चा व्यो परदेशे रे ॥ विरह दहे नव यौवना, प्राणी प्राण शुं लेशे रे ॥१॥ मुनिवर देखी मन चढ्यो॥ ए आंकणी ॥ रूमें दीठे रूअडो, चढ़ती जो वन वारो रे । नयण वयणे करी निर्मलो, मयण तणे अनुसारो रे। मुनि ॥२॥ नर यौवन घर एकली, लाब तो नहिं पारो रे ॥ चतुर त्रियां चित्त चिंतवे, रहेवू स्वेदाचारो रे ।। मुनि ॥३॥ आठ गुणो नरथी क ह्यो, नारी विषयविकारो रे । लाज चगुणी चित्त धरे, साहसनो मी रो रे। मुनि॥४॥ काज करे कुंजर समां, कोडी देखो मरपे रे। फूलें नारी वीही पडे, साप सिराणे ऊडपे रे ।। मुनि ॥५॥ मन मधुकर ज मतो प्रको, राखी न शके कोइरे ॥ पण मालती क्षण लोगने, वन वन | जमतो जो रे । मुनि॥६॥ वाल सहेलो मोकली, तेडाव्यो ऋषि रायो रे ॥ ततक्षण ते उत्तीथश, प्रमदा लागे पायो रे ॥मुनि ॥5॥ शुं मागो स्वामी तुमें, कवण तुमारो देशो रे ।। रूपवंत रसीयामणा, दी सो यौवन वेशो रे ॥ सुनि ॥७॥ तांत न कीजें साधुनी, अमनें जिक्षा काजो रे ।। नमरतणी परें आचरुं, देशविदेशनां राजो रे ॥ सुनि॥ए॥ तव घरणी घरमा गइ, हियडे हेज न मावे रे ।। सिंह केरीसया साधुने, मोदक लेश्वहोरावे रे। मुनि ॥ १०॥ नेहहप्टें सन्सुख जुबे, आलस मोड अंगो रे ॥ अवला ते आतुर थर, प्रगट कीयो मनरंगो रे । सुनिण ॥११॥ हे गुणवंता साधुजी, नमवू घर घर वारो रे ॥ दीका पुष्कर पा लवी, विपसो तुम आचारो रे ॥ मुनि ॥ १२॥ महोटां मंदिर मालीयां,' लूटी मांहे वासो रे ।। सुखें रहो मेली करी, परघर केरी आशा रे॥मुनि. ।। १३॥ किहां हिंगोला सोहामणा, फूलतणा सहकारो रे ॥ किहां धरणी तल पोढवू, कांकराशुं व्यवहारो रे ॥ मुनि ॥१४॥इति ॥ ॥दोहा॥ ॥ सुगुण सखूणा साधुजी, नमवू देश विदेश ॥ रमतो मंदिरमालिये, जोवन लाहो लेश ॥१॥ बोल सुणी अवला तणा, फिश्या मोर कंगार ॥ माटो पण गुल्यो घणुं, अरहन्नक अणगार ॥२॥ - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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